|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *चित्र--विचित्र* " ( २१७ )
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*श्लोक*----
" स्वयं पञ्चमुखः पुत्रौ गजाननषडाननौ ।
दिगम्बरः कथं जीवेदन्नपूर्णा न चेद् गृहे ? ।। "
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*अर्थ*----
स्वयं शंकर पांच मुखवाला । पुत्र दो, एक का मुख हाथी का , और दुसरे को छह मुख । घरधनी ( घरवाला ) दिगम्बर! ऐसे स्थिति में घर में अगर अन्नपूर्णा नही होती तो शंकर कैसे जिंदा रहता ?
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*गूढ़ार्थ*-----
सुभाषितकार ने कितनी खुबसूरती से शंकर -- पार्वती के संसार का वर्णन किया है । शंकर= पंचानन= पांच मुखवाला । गजानन = हाथी के मुखवाला।
षडानन= छह मुखवाला ।
अन्नपूर्णा = अन्न को पूरा करनेवाली ।
अगर शंकर की अर्धांगनी अन्नपूर्णा ना होती तो दिगम्बर शंकर का संसार कैसे चलता ?
इस जगत् का संसार भी तो शिव-- पार्वती ही चलाते है ।
शिव कुछ भी वस्तु ना जमा करने का संदेश जगत को देते है ।
निःसंग शिव त्याग और निस्वार्थ की मूर्ति है ।
तो पत्नी पार्वती अन्नपूर्णा जो जगत का पालन-पोषण करके मां की ममता तथा वात्सल्य का प्रतीक है ।
और भोजन के मामले में हम लोग ( जगत ) गजानन और षडानन है ।
जगत्पिता और जगन्माता के भरोसे ही तो यह जगत चल रहा है ।
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डाॅ . वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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