Thursday, July 16, 2020

Glory of Grammar - Sanskrit subhashitam

|| *ॐ* ||
   " *सुभाषितरसास्वादः* "
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     " *व्याकरण--प्रशंसा* " ( २२२ )
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     *श्लोक*-----
      " यस्य षष्ठी चतुर्थी  च  विहस्य  च  विहाय  च  ।
       यस्याहं  च  द्वितीयाच ,  द्वितीया  स्यामहं  कथम्  ? ।। "
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      *अर्थ*----
   जिसको  ' अहं ' द्वितीया  का  रूप  लगता  है ,  और  विहाय  यह  चतुर्थी  का  रूप  लगता  है  और  विहस्य  षष्ठी  का  रूप  लगता  है ।
   उसकी  ' द्वितीया ' मैं  कैसे  होऊं ?
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   *गूढ़ार्थ*-----
    " एक  व्याकरण  में  कच्चा  तरुण  था ,  उसे  संस्कृत  में  द्वितीया  का  प्रत्यय  अम् ,  चतुर्थी  का  य  और  षष्ठी  का  स्य  प्रत्यय  होता  है  , ऐसा  लगता  था ।  ' अहम् ' की  प्रथमा  विभक्ति  होने  के  बाबजूद  उसने  उसे  द्वितीया  कहा ।  और  ' विहाय ' ' छोड के ' और  ' विहस्य ' मतलब  हंस के  ऐसे  क्रियाविशेषण  अव्यये  होने  के बावजूद  उसने  उसे  'चतुर्थी 'और ' षष्ठी '  का  रूप  माना । "
ऐसे  तरुण  की  पत्नी  होना  एक  तरुणी  ने  स्विकार  नही  किया ।
  उस तरुणी  ने  कहा -- ' ऐसे  व्याकरण  में  कच्चे  तरुण  की  ' द्वितीया ' मतलब ' पत्नी '  मैं  कैसे  होऊं ? 
यहाँ  पर " मोदकै  सिञ्च माम् " की  याद  आ  गयी  न ?
मा+ उदकैः ।  मोदकैः।
   ' मा ' मतलब  नही  और ' उदक '  मतलब  पानी  ।
  " मेरे  उपर  पानी  का  सिञ्चन  मत  करो "! 
इतना  छोटासा  अर्थ  है  इस  वाक्य का । लेकीन  राजा ने  रानी  के  लिये  एक  ताट भर  मोदक  मंगाये । सोचो  रानी  कितनी  हंसी  होगी ?
इत्यलम् ।
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*卐卐ॐॐ卐卐*
    *डाॅ .वर्षा प्रकाश टोणगांवकर*
     पुणे / महाराष्ट्र 
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