|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *प्रहेलिकाः* " ( २०६ )
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*श्लोक*----
" गृहाङ्गणे वा ललितोद्याने
सञ्चलनं मम चाग्रे ।
बालबालिकाः मय्यनुरक्ताः
वारयितुं तान् कः खलु शक्तः ?
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*अर्थ*----
गृह के अङ्गण में या उद्यान में , बालक और बालिका मेरे आगे पिछे ही रहते है । और वह मुझपर बहुत ही अनुरक्त भी रहते है।
मुझसे उनको दूर कोई नही कर सकता ।
तो मैं कौन हूँ ?
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*गूढ़ार्थ*----
पुष्पम्
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*卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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