|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *प्रहेलिकाः* " ( १७१ )
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*श्लोक*---
" मार्गे चलामि विविधांश्च जनान् गृहीत्वा
मध्ये स्थिरा जनसमूहविसर्जनाय ।
यात्रापरायणजनान् न कुतोऽपि दुःखं
न्याय्यात्पथः प्रविचलामि पदं न चैकम् " ।।
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*अर्थ*---
मार्ग से विविध लोगों को लेकर चलती हूँ । बीच बीच में जनसमूह का विसर्जन करने के लिये रूकती हूँ । यात्रा करने वाले लोगों को बिलकुल त्रास नही होता है । न्याय के पथ से मैं कभी विचलित नही होती हूँ । तो मैं कौन हूँ ?
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*गूढ़ार्थ*----
Ganesha
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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