|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *धीप्रशंसा* " (२०१ )
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*श्लोक*----
" हस्ती स्थूलतराः स चाङ्कुशवशः किं हस्तितुल्योऽङ्कुशः?
दीपे प्रज्वलते विनश्यति तमः किं दीपतुल्यं तमः ? ।।
वज्रेणाभिहताः पतन्ति गिरयः किं वज्रतुल्यो गिरिः ?
बुद्धिर्यस्य गरीयसी स बलवान् स्थूलेषु कः प्रत्ययः ? ।। "
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*अर्थ*----
इतना बडा हाथी पर वो एक छोटेसे अंकुश से काबू में आता है , क्या अंकुश हाथी से बडा है ?
दिया अंधेरे का नाश करता है ,पर क्या दिया का स्वरूप अंधेरे इतना विस्तीर्ण है ?
वज्र महापर्वत को धराशायी करता है , पर क्या वज्र पर्वत जितना थोडी ही है न ?
जिसकी बुद्धि बडी वही बलवान होता है, सिर्फ बडे आकार को क्या देखना ?
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*गूढ़ार्थ*----
बुद्धि की महिमा यहाँ पर सुभाषितकार ने हमे बतायी है। किसी बडी चीज़ को काबू में लाने के लिये उतनी बड़ी चीज की हमे आवश्यकता नही होती । एक छोटी सी चीज के साथ अच्छी बुद्धि चाहिए बस। " बुद्धिर्यस्य बलं तस्य " । यही सही है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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