|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *संकीर्णसुभाषितः* " ( १८० )
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*श्लोक*-----
" दीपो भक्षयते ध्वान्तं कज्जलं च प्रसूयते ।
यदन्नं भक्षयेन्नित्यं जायते तादृशी प्रजा " ।।
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*अर्थ*----
दिया अंधार को खाकर काजल को जन्म देता है । सही ही है जैसा अन्न खाओगे वैसी ही प्रजा होती है ।
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*गूढ़ार्थ*------
सुभाषितकार ने कितना सही कहा है न ? जैसा हम अन्न खाते है वैसे ही हमारे आचार और विचार होते है । इसलिये गर्भिणी के लिये विशेष आहार की व्यवस्था की जाती है ताकी अगली प्रजा सात्विक विचारों वाली जन्मे । भारतीय संस्कृति का छोटा से छोटा विशेष अभ्यास करनेलायक ही है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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