|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *पातुवः* " ( २२३ )
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*श्लोक*----
" राज्यं येन पटान्तलग्नतृणकं त्यक्तं गुरोराज्ञया
पाथेयं परिगृह्य कार्मृकुवरं घोरं वनं प्रस्थितः ।
स्वाधीनः शशिमौलिचापविषये प्राप्तो न वै विक्रियां
पायाद्वः स बिभिषणाग्रजनिहा रामाभिधानो हरिः ।। "
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*अर्थ*---
उत्तरीय के कोने को लगे हुए तृण को जैसे झटक कर मनुष्य आगे बढता है ठीक उसी तरह की सहजता से उसने पिता की आज्ञा से राज्य छोडा । और शिदोरी की तौर पर अपना कोदण्ड धनुष्य ही लेकर जो वन में जाने के लिये निकला , साथ में पत्नी होकर भी जो क्षणभर भी विकारवश नही हुआ । ऐसा बिभिषण का ज्येष्ठ भाई रावण को मारनेवाला श्रीराम नाम का विष्णु / सिंह आपकी रक्षा करे ।
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*गूढ़ार्थ*-----
तृण हटाने की सहजता से श्रीराम ने अपना राज्य पित्राज्ञा से छोडा और धन -धान्य आदि कुछ भी साथ ले जाने की बजाय केवल और केवल अपना कोदण्ड धनुष्य साथ लिया । साथ में पत्नी सीता होने के बाद भी जो विकारवश नही हुआ और जिसने पराक्रम से रावण जैसे दैत्य को मारा ऐसा पुरुषोत्तम / नरोत्तम आदर्श श्रीराम जो विष्णु का ७ वा अवतार माना गया है ; जो युद्ध भूमि में प्रत्यक्ष सिंह ही है ऐसा श्रीराम सबकी रक्षा करे । 👏👏👏👏👏👏
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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