Tuesday, August 20, 2024

Fire and water at only place is waste - Sanskrit

|| *ॐ* ||
               " *वन्दे संस्कृतमातरम्* "
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          " *लौकिकन्यायकोशः* " ( १६ )
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         " *उदकविशीर्णन्यायः*"
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उदके  क्षिप्त  इति ।  अग्नेः अनेक-- उपयोगाः सन्ति ।  परन्तु  अयम्  अग्निः जले  क्षिप्तः चेत्  शान्तः  भवति । जलम्  अग्निः  इति  द्वयम्  अपि  स्वतन्त्ररीत्या तावत्  उपकारं करोति ।  द्वयम्  एकत्र  आगतं  चेत्  द्वयोः  अपि  शक्तिः  नष्टा  भवति ।  
निष्फलस्य  कर्मणः सूचनाय  अस्य  न्यायस्य  प्रयोगः  भवति ।
जीवनमुक्तानां संसारः  अपि  एवंविधः भवति ।
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*卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे /  महाराष्ट्र 
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