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" *वन्दे संस्कृतमातरम्* "
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" *लौकिकन्यायकोशः* " ( १६ )
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" *उदकविशीर्णन्यायः*"
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उदके क्षिप्त इति । अग्नेः अनेक-- उपयोगाः सन्ति । परन्तु अयम् अग्निः जले क्षिप्तः चेत् शान्तः भवति । जलम् अग्निः इति द्वयम् अपि स्वतन्त्ररीत्या तावत् उपकारं करोति । द्वयम् एकत्र आगतं चेत् द्वयोः अपि शक्तिः नष्टा भवति ।
निष्फलस्य कर्मणः सूचनाय अस्य न्यायस्य प्रयोगः भवति ।
जीवनमुक्तानां संसारः अपि एवंविधः भवति ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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