Thursday, August 27, 2020

Svabhava of Lakshmi - Sanskrit sloka

|| *ॐ* ||
        " *सुभाषितरसास्वादः* "
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    " *लक्ष्मी--स्वभावः* " ( १०० )
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      *श्लोक*-----
  "  पद्मे  मूढजने  ददासि  विभवं  विद्वत्सु  किं  मत्सरो
     नाहं  मत्सरिणी  न  चापि  चपला  नैवास्ति  मूर्खे  रतिः।
     मूर्खेभ्यो   द्रविणं  ददामि  नितरां  तत्कारणं  श्रूयताम्  ।
      विद्वान्  सर्वगुणेषु  पूजिततनुर्मूर्खस्य  नान्या  गतिः " ।।
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*अर्थ*---
 हे  कमले ( लक्ष्मी  देवी ) आप  मूर्खों  को  ही  धनवैभव  प्रदान  करती हो वह  क्यों ?  विद्वान  लोंगो  के  लिए  आपके  मन  इतना  मत्सर- द्वेष  क्यों  है ? लक्ष्मी  कहती  है --" मेरे  मन  में  विद्वान  जनों  के  लिए  राग  अगर  द्वेष  नही  और  न ही  मैं  चञ्चला और  चपला  हूँ ।  और  न ही  मेरा  कोई  मूर्खों  प्रति  प्रेम  है । मै  मूर्खों  के  पास  ही  रहती  हूँ  और  उन्हे  ही  संपत्ति  देती  हूँ  इसका  कारण  सुनो -- विद्वान  उनके  गुणों  के  कारण  सर्वत्र  पूजनीय  होते  है  किन्तु  मूर्खों  की  मेरे  अलावा  कोई  गती  नही होती ।  अगर  मैंने  उनकी  तरफ  देखा  नही  तो  वह  बेचारे क्या  करेंगे? उनको  कौन  पूछेगा ?
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*गूढ़ार्थ*---
कुछ भी विधि  निषेध  न  मानते  हुए  जो  लोग  पैसा  कमाते  है वह  आजकल  भले ही स्मार्ट  माने  जाते  होंगे  किन्तु  सुभाषितकार  उन्हे  मूर्ख की श्रेणी  में  रख  रहा  है ।  और  लक्ष्मी  भी  उन्हे  बेचारे  की श्रेणी  में ही  रख रही है । विद्वान  सर्वत्र  वंदनीय  और  पूजनीय  ही  होते  है । जिनके  भरोसे  वह  अपना  पेट  पाल  ही  लेते है । भले  लक्ष्मी उनके  पास  स्थिर  नही  रहती हो ।
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे  /  महाराष्ट्र 
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