|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *सूर्योदयवर्णनम्* " ( २०५)
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*श्लोक*----
" उदयति विवतोर्ध्वरश्मिरज्जावहिमरूचौ हिमाधाम्रि याति चास्तम् ।
वहति गिरिरयं विलम्बिघण्टाद्वयपरिवारितवारेणन्द्रलीलाम् ।। "
( शिशुपालवधम् ( माघ ) )
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*अर्थ*----
' शिशुपालवध ' इस महाकाव्य में महाकवि माघ ने सूर्योदय का कितना वास्तववर्णन किया है यह देखिए और यही श्लोक के कारण इस कवी को ' घण्टामाघ ' कवी की उपाधि प्राप्त हुयी है ।
कवी कह रहा है -- पूर्व दिशा को सूर्योदय हो रहा है , उसी समय पश्चिम की तरफ पूर्ण चन्द्र का अस्त हो रहा है । और इन दोनों के बीच ऊंचे पर्वतों की शृंखला है । पर्वत के तरफ सूर्यबिम्ब जो एक घण्टासमान गोल दिख रहा है तो दूसरे और चन्द्रबिम्ब भी घण्टासमान ही दिख रहा है लेकीन दोनो बिम्ब स्वर्णमय ही दिख रहे है । जैसे यह पर्वत गजराज है और सूर्य और चन्द्र की लंबी-लंबी और विस्तृत किरणें मतलब दो सोनेरी शृंखला , पर्वत रूप हाथी के दोनों तरफ सूर्य और चन्द्र दो सोनेरी घण्टा । सूर्योदय का इससे अच्छा वर्णन और कौनसा होगा ?
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*गूढ़ार्थ*-----
कितना सुन्दर सूर्योदय का वर्णन कवी माघ ने यहाँ पर किया है
न ? हुबहू हमारे सामने वह दृश्य दिखने लगता है , संस्कृत में इस प्रकार को चित्रकाव्य भी कहते है । ऐसे सुन्दर वर्णन करने के लिये दृष्टि भी उतनी ही स्वच्छ और निर्मल जरूरी है । दृष्टि ही नही तो मन भी उतना ही शांत और पवित्र होना जरूरी है तभी ह्रदय में निसर्ग की साफ- सुथरी तस्वीर निकलती है और फिर माघ जैसे लोग उसे शब्दबद्ध करके हमे उस निसर्ग में ले जाते है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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