|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *रामस्तुति* " ( २०७ )
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*श्लोक*----
" द्विः शरंन अभिसंधत्ते द्विः स्थापयति न आश्रितान ।
द्विः ददाति न च अर्थिभ्यः, रामो द्विः न एव भाषते ।।"
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*अर्थ*-----
राम दो बार शरसंधान नही करते , आश्रितों को दो बार आधार नही देते । याचकों को भी दो बार दान नही करते । और वचन भी दो बार नही देते।
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*गूढ़ार्थ*---
कोई रामभक्त सुभाषितकार राम के बारे में बता रहा है की,--
राम एकबार ही बाण चलाते है इसलिए हम उन्हे एकबाणी मानते है ।
वह आश्रितों को भी दो बार आश्रय नही देते तो एक बार और कायमस्वरूपी आश्रय देते है । याचकों को भी एक ही बार इतना दान दे देता ही उसे दुबारा किसी के पास याचना करने की जरूरत ही नही पड़नी चाहिए । और राम का एकवचनी यह गुण तो प्रसिद्ध ही है । एकवचनी , एकबाणी , एकपत्नी राम तो समाज में प्रसिद्ध है ही। ऐसे श्रीराम को 👏👏👏👏👏👏
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डाॅ . वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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