Monday, June 15, 2020

Grihasthashram - Sanskrit subhashitam

|| *ॐ* ||
    " *सुभाषितरसास्वादः* "
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   " *गृहस्थाश्रम* " ( १५५ ) 
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*श्लोक*---
   " यथा  नदीनदाः  सर्वे  सागरे  यान्ति  संस्थितिम् ।
     एवमाश्रमिणः  सर्वे  गृहस्थे  यान्ति  संस्थितिम्  " ।।
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*अर्थ*----
   नद  और  नद्या  सब  समुद्र  में  जाकर  जैसे  विलीन  होते  है ।  वैसे  ही  चारही  आश्रम  गृहस्थाश्रम  में  एकत्रित  होते  है ।
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*गूढ़ार्थ*---
  इतनी  बडी  ताकत  गृहस्थाश्रम में  है  क्यों  कि  जग  का  हित  करने  की  पात्रता  इसी  आश्रम  में  है ।  ब्रह्मचर्याश्रम , वानप्रस्थाश्रम , गृहस्थाश्रम  और  संन्याश्रम  यह  चारही आश्रम  अगर  एकत्र  तराजू  में  तोले  गये  तो  सुज्ञ  लोग  कहते  है  कि -- ब्रह्मचर्याश्रम ,  वानप्रस्थाश्रम , संन्यासाश्रम  एक  पलड़े  में  होंगे  और  गृहस्थाश्रम  एक  पलड़े  में । इतना  गृहस्थाश्रम  महत्वपूर्ण  है ।
¤¤¤¤¤ ---- एक बार  रामकृष्ण आश्रम  के  एक  स्वामीजी  से  चारों  आश्रम  के  बारे  में  मेरी  विस्तृत  चर्चा  हुयी  थी  तब  उन्होने  जो  सुन्दर  विवेचन  किया  था वह  मैं  आजन्म  नही  भूल सकती । 👏👏
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*卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे /  महाराष्ट्र 
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