|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *गृहस्थाश्रम* " ( १५५ )
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*श्लोक*---
" यथा नदीनदाः सर्वे सागरे यान्ति संस्थितिम् ।
एवमाश्रमिणः सर्वे गृहस्थे यान्ति संस्थितिम् " ।।
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*अर्थ*----
नद और नद्या सब समुद्र में जाकर जैसे विलीन होते है । वैसे ही चारही आश्रम गृहस्थाश्रम में एकत्रित होते है ।
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*गूढ़ार्थ*---
इतनी बडी ताकत गृहस्थाश्रम में है क्यों कि जग का हित करने की पात्रता इसी आश्रम में है । ब्रह्मचर्याश्रम , वानप्रस्थाश्रम , गृहस्थाश्रम और संन्याश्रम यह चारही आश्रम अगर एकत्र तराजू में तोले गये तो सुज्ञ लोग कहते है कि -- ब्रह्मचर्याश्रम , वानप्रस्थाश्रम , संन्यासाश्रम एक पलड़े में होंगे और गृहस्थाश्रम एक पलड़े में । इतना गृहस्थाश्रम महत्वपूर्ण है ।
¤¤¤¤¤ ---- एक बार रामकृष्ण आश्रम के एक स्वामीजी से चारों आश्रम के बारे में मेरी विस्तृत चर्चा हुयी थी तब उन्होने जो सुन्दर विवेचन किया था वह मैं आजन्म नही भूल सकती । 👏👏
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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