||ॐ||
" सुभाषित रसास्वाद"(२५)
----------------------------------------------------------------------
" सामान्यनीतिः "।
---------------------------------------------------------------------
श्लोक---
" कन्या वरयते रूपं माता वित्तं पिता श्रुतम् ।
बान्धवाः कुलमिच्छन्ति मिष्टान्नामितरे जनाः "।। ( नैषधीयचरितम्-- श्रीहर्ष)
------------------------------------------------------------------------------
अर्थ---
विवाहसम्बन्ध निश्चित करते समय--- कन्या वर का रूप देखती है।
माता उसकी आर्थिक परिस्थिती की तरफ ध्यान देती है।
पिता उसके वंश की कीर्ति है क्या यह सोचता है ।
रिश्तेदार उसके कुल की श्रेष्ठता देखते है ।
और बाकी सब लोग मिष्टान्न का ही विचार करते है और कहते है भोजन अच्छा था तो " विवाह अच्छा हुआ"।
-----------------------------------------------------------------------------
गूढार्थ---
सुभाषितकार ने कितना सही कहा है । आजकल काॅन्ट्राॅक्ट पद्धति में विवाह में शामिल होने वाले लोग केवल और केवल गेट टू गेदर है ऐसा मानकर ही आते है । बहुत दिनों के बाद मुलाकात हो गयी है तो गप्पें मारते है । यह हो गयी रिश्तेदारों की बात ।
जो बाहर वाले लोग आते है वह विवाह होने के बाद तुरंत भोजन गृह जाकर खाने लायक क्या है यह देखते है । और उसपर चर्चा करते है कि फलां विवाह में यह डिश कितनी अच्छी थी वगैरे वगैरे ।
और तुरंत निकल भी जाते है।
यही आजकल विवाह की विडंबना हो गयी है।
काश कोई विवाह का सच्चा अर्थ समझ पाता........
----------------------------------------------------------------------------
卐卐ॐॐ卐卐
----------------------------------------
डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
" सुभाषित रसास्वाद"(२५)
----------------------------------------------------------------------
" सामान्यनीतिः "।
---------------------------------------------------------------------
श्लोक---
" कन्या वरयते रूपं माता वित्तं पिता श्रुतम् ।
बान्धवाः कुलमिच्छन्ति मिष्टान्नामितरे जनाः "।। ( नैषधीयचरितम्-- श्रीहर्ष)
------------------------------------------------------------------------------
अर्थ---
विवाहसम्बन्ध निश्चित करते समय--- कन्या वर का रूप देखती है।
माता उसकी आर्थिक परिस्थिती की तरफ ध्यान देती है।
पिता उसके वंश की कीर्ति है क्या यह सोचता है ।
रिश्तेदार उसके कुल की श्रेष्ठता देखते है ।
और बाकी सब लोग मिष्टान्न का ही विचार करते है और कहते है भोजन अच्छा था तो " विवाह अच्छा हुआ"।
-----------------------------------------------------------------------------
गूढार्थ---
सुभाषितकार ने कितना सही कहा है । आजकल काॅन्ट्राॅक्ट पद्धति में विवाह में शामिल होने वाले लोग केवल और केवल गेट टू गेदर है ऐसा मानकर ही आते है । बहुत दिनों के बाद मुलाकात हो गयी है तो गप्पें मारते है । यह हो गयी रिश्तेदारों की बात ।
जो बाहर वाले लोग आते है वह विवाह होने के बाद तुरंत भोजन गृह जाकर खाने लायक क्या है यह देखते है । और उसपर चर्चा करते है कि फलां विवाह में यह डिश कितनी अच्छी थी वगैरे वगैरे ।
और तुरंत निकल भी जाते है।
यही आजकल विवाह की विडंबना हो गयी है।
काश कोई विवाह का सच्चा अर्थ समझ पाता........
----------------------------------------------------------------------------
卐卐ॐॐ卐卐
----------------------------------------
डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
No comments:
Post a Comment