*स्थानभ्रष्टाः न शोभन्ते*
*दन्ताः केशाः नखा नराः।*
*इति विज्ञाय मतिमान्*
*स्वस्थानं न परित्यजेत्॥*
अर्थात- जिस प्रकार मनुष्य के दांत, केश, नाखून इत्यादि अपने निश्चित स्थान पर ही शोभा देते हैं, इनके स्थान परिवर्तन करने से मनुष्य कुरूप हो जाता है। उसी प्रकार मनुष्य का अस्तित्व एवम् शोभा उसकी मातृभूमि से ही होती है, किञ्चित् लाभ के लिये मूल स्थान परिवर्तन करने से मनुष्य का अस्तित्व विकृत हो जाता है। इस तथ्य को जानने वाले बुद्धिमान् लोग कभी अपने मूल स्थान का त्याग नहीं करते।
*🙏🌻🌺मङ्गलं सुप्रभातम्🌺🌻🙏*
*मेरी तरफ से आपको कार्तिक पूर्णिमा और देव दीपावली की अनेकशः शुभकामनाएँ🙏*
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