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"सुभाषित रसास्वाद"(४)
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"पंडितप्रशंसा"
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श्लोक-----
"यत्र विद्वज्जनो नास्ति श्लाघ्यस्तत्राल्पधीरपि।
निरस्तपादपे देशे एरण्डोऽपि द्रुमायते"।।
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अर्थ---जहाँ कोई विद्वान नही ऐसे प्रदेश में मंदबुद्धी और अल्पज्ञ व्यक्ति को भी प्रतिष्ठा और प्रशंसा प्राप्त होती है । जैसे जिस प्रदेश में पेड नही होते वहाँ पर एरण्ड को भी वृक्ष का सन्मान प्राप्त होता है।
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गूढार्थ---" जहाँ पर कोई ज्ञानी नही होता वहाँ पर अल्पज्ञ को भी विद्वान का महत्व प्राप्त होता है"।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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