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" सुभाषित रसास्वाद"(३२१ )
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" लक्ष्मी--स्वभाव"
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श्लोक--
" लक्ष्मि क्षमस्व वचनमिदं दुरुक्तं
अन्धीभवन्ति पुरुषास्त्वदुपासनेन।
नो चेत्कथं कमलपत्रविशालनेत्रो
नारायणः स्वपिति पन्नभोगतल्पे"।।
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अर्थ---
हे लक्ष्मी, अब मैं आपके बारे में कटुवचन कहूंगा , इसलिए मुझे क्षमा कर दो। किन्तु यह सत्य ही है कि लोग आपके साथ रहने से अंधे हो जाते है। उनकी विवेकबुद्धि नष्ट हो जाती है । ऐसा नही तो फिर बताईये कि कमलनयन भगवान् विष्णु सांप ( शेषनाग) की शय्या पर क्यों शयन करते? यह आपका ही तो मोहक प्रभाव है जिसके कारण वह कहाँ सो रहे है यह विवेक ही उन्हे नही रहा।
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गूढ़ार्थ---
लक्ष्मी का आगमन होने के बाद व्यक्ति की नीर-क्षीर क्षमता नष्ट हो जाती है। धनी व्यक्ति आगे पिछे नही सोचता और उलटे सुलटे कार्य करने लगता है।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे/ महाराष्ट्र
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