जानकीनाथ यज्ञेश अहिल्याप्राणदायक ।
इन्द्रपुत्रेश सीतेश कुरु मे सर्वमंगलम् ।।(1)
दशरथदृगानन्द कौशल्यासुखदायक ।
वायुपुत्रेश सीतेश कुरु मे सर्वमंगलम् ।।(2)
विभीषणसुखप्रद जनकस्य सुतापते।
सूर्यपुत्रेश सीतेश कुरु मे सर्वमंगलम् ।।(3)
दशाननारे पद्माक्ष खरदूषणघातक ।
नीलकण्ठेश सीतेश कुरु मे सर्वमंगलम् ।।(4)
तापसाध्वरत्रातश्च जलधिसेतुकारक ।
पक्षिराजेश सीतेश कुरु मे सर्वमंगलम्।।(5)
----- मार्कण्डेयो रवीन्द्रः
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संसारसुखं तृणवद्विचिन्त्य
प्रजाहिते दत्तमतिस्सुरो यः।
लोकाभिरामो दशकण्ठवामो
मोदाय भद्राय च नोsस्तु नित्यम्।।
भावार्थ-अपने सांसारिक सुखको उपेक्षा करके प्रजामंगलमे यो अपने मति हरसमय दिया करते थे वही आनन्ददायी रावणके शत्रु श्रीराम हमारे मंगल करे तथा खुस रखें।
जय जगन्नाथ। रामनवमी की शुभेच्छा।
सुप्रभातम्. बुद्धेश्वरषडङ्गी
जानकी चोर्मिला माण्डवी कीर्तिका
शोभितास्सुश्रियो राघवैस्तैर्युताः ।
लोककल्याणयुक्तास्सदा ता इमाः
राजशोभायशोवर्णनं दुष्करम् ।।९।।
डा. शिवानी शर्मा, कुरुक्षेत्रम् ।
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ओं रां रामाय नमः
ज्ञाने यस्य मतिः सुरेष्वतिमति र्वंशस्य कीर्त्तौ मतिः
धर्मे पूतमतिः प्रजासु सुमति र्युद्धेषु जैत्री मतिः।
दैत्ये कोपमतिस्तपोधनजने यस्यापि पूजामतिः
श्रेष्ठे भक्तिमति र्गुरौ नतमतिः सीतापतिः पातु नः॥
(व्रजकिशोरः)
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*रामः कार्मुकधृत् कृपाकरवरो, रामं सदेडे तथा।*
*रामेणैव सुदण्डिताः खलबला, रामाय तुभ्यन्नमः।।*
*रामान्नास्ति धनुर्धरः परतरो, रामस्य पादौ नुमः।*
*रामे भक्तिभरं सदा मम मनो, हे राम मां तारय।।*
*डॉ.महावीरप्रसादसारस्वतः*
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रघुपतिञ्च भजे करुणाकरम्
पशुपतिर्हि करोति च वन्दनम् ।
तव कृपाञ्च विना हनुमत्प्रभो
जगति कम्पनमेति न पल्लवम् ।।
छन्द:--द्रुतविलम्बितम्
---मार्कण्डेयो रवीन्द्र:
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बलमेषामस्तीति बलाः, अर्श आदिभ्योच्। खलाश्च ते बलाः खलबलाः।
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