Tuesday, October 30, 2018

Sanskrit subhashitam

|| *ॐ* ||
   " *सुभाषितरसास्वादः* "
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   " *तत्त्वज्ञाननीति* " ( २२१ )
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   *श्लोक*----
  " एकस्य   कर्मं  संविक्ष्य  करोति  अन्योऽपि  गर्हितम्  ।
  गतानुगतिको  लोकाः  न  लोकाः  पारमार्थिकः ।। "
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   *अर्थ*----
एक  ने  किया  हुआ  कार्य  देखकर  दूसरा  भी  वही  दोषास्पद  कार्य  आंख  झांक कर  करता  है ।  गतानुगतिक ( अंधानुकरण  करनेवाले )  लोग  दूसरे  का  हेतु  समझ  नही  सकते ।
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*गूढ़ार्थ*-----
  भगवान  ने  मनुष्य  को  बुद्धि  दी  है , लेकीन  मनुष्य  अपनी  स्वतन्त्र  बुद्धि  का  कम  ही  उपयोग  करता  है ।  हर  एक  चीज़  के  पिछे  कोई ना  कोई  कार्यकारणभाव  आवश्यक  होता  है ,  और  वह  समझना  अत्यंत  आवश्यक  है ।  जिसको  कोई  आधार  नही  वह कार्य  नही करना  चाहिए।
अध्यात्म  में  और  कर्मकाण्ड  में  लिप्त  लोग  कारण  या  अर्थ  समझे  बिना  औपचारिक  क्रिया  करते  रहते  है , जैसे -- एक  ने  गलत  पूजा  की  क्रिया  तो  या  फिर  गलत  उच्चारण  किया  तो  पीछे वाले  भी  वैसा  ही  कार्य  करते  है । कार्य  का  हेतु प्रथम  समझना  चाहिए ।  
    और  अंधानुकरण  का  त्याग  करना  चाहिए ।  सुभाषितकार  ने  वही  समझाना  का  प्रयत्न  किया  है  की -- ' न  लोका  पारमार्थिकाः ' मतलब  दुसरे  का  हेतु  और   कारण  समझना अत्यंत  आवश्यक  है ।
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*卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे  / नागपुर  महाराष्ट्र 
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