|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *तत्त्वज्ञाननीति* " ( २२१ )
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*श्लोक*----
" एकस्य कर्मं संविक्ष्य करोति अन्योऽपि गर्हितम् ।
गतानुगतिको लोकाः न लोकाः पारमार्थिकः ।। "
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*अर्थ*----
एक ने किया हुआ कार्य देखकर दूसरा भी वही दोषास्पद कार्य आंख झांक कर करता है । गतानुगतिक ( अंधानुकरण करनेवाले ) लोग दूसरे का हेतु समझ नही सकते ।
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*गूढ़ार्थ*-----
भगवान ने मनुष्य को बुद्धि दी है , लेकीन मनुष्य अपनी स्वतन्त्र बुद्धि का कम ही उपयोग करता है । हर एक चीज़ के पिछे कोई ना कोई कार्यकारणभाव आवश्यक होता है , और वह समझना अत्यंत आवश्यक है । जिसको कोई आधार नही वह कार्य नही करना चाहिए।
अध्यात्म में और कर्मकाण्ड में लिप्त लोग कारण या अर्थ समझे बिना औपचारिक क्रिया करते रहते है , जैसे -- एक ने गलत पूजा की क्रिया तो या फिर गलत उच्चारण किया तो पीछे वाले भी वैसा ही कार्य करते है । कार्य का हेतु प्रथम समझना चाहिए ।
और अंधानुकरण का त्याग करना चाहिए । सुभाषितकार ने वही समझाना का प्रयत्न किया है की -- ' न लोका पारमार्थिकाः ' मतलब दुसरे का हेतु और कारण समझना अत्यंत आवश्यक है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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