Monday, February 1, 2021

Samidhaa - Sanskrit sloka

|| चातुर्मासस्य ज्ञानयज्ञ ||

समिधा [५]

|| चतुर्थोऽध्यायः ||

'' आब्रह्मस्तंबपर्यन्ते भूतग्रामे चतुर्विधे |

विज्ञस्यैव हि सामर्थ्यमिच्छानिच्छाविवर्जने ||''

अर्थ—ब्रह्मदेव से लेकर तृण तक , उत्पन्न हुए चार प्रकार के जीवन समूह में, इच्छा और अनिच्छा रहती ही है , उनको दूर रखने का सामर्थ्य अकेले ज्ञानी व्यक्ति में ही है |

विशेषार्थ—चतुर्विध – जीव समूह के चार प्रकार –

[१] उद्भिज्ज – जमीन से निकले हुए |

[२] स्वेदज – पसीने से निर्माण  हुए |

[३] अंडज – अंडे से निकले हुए |

[४] जरायुज – गर्भ से निकले हुए |

जैसे  ' जातस्य हि ध्रुव मृत्यु '| वैसे ही जन्मे हुए हर एक में इच्छा भी रहती ही है | सिर्फ ज्ञानी उसे दूर रखने का  सामर्थ्य रखता है |

कल श्लोक [६]

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

|| तस्मै श्री अष्टावक्राय नमः ||

डॉ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर

पुणे / महाराष्ट्र

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