|| ॐ ||
|| सुभाषित-रसास्वादः ||[३७४]
''हास्यरसः''
'' आपाण्डुरा शिरसिजास्र्त्रिबली कपोले, दन्तावली विगलिता नच मे विषादः |
एणीदृशो युवतयः पथि मां विलोक्य, तातेति भाषणापराः खलु वज्रपातः||''
अर्थ—सब बाल सफेद हो गये हें, गालों पर दो-तीन झुर्रियाँ भी आयी हे| सब दांत छोडकर गये हें , पर इसका मुझे दुःख नही हें | परंतु जब कोई युवती रास्ते में मिलती हें और 'पिताजी' कहकर बुलाती हें तब मेरे हृदय में कितनी वेदनाएं होती हें यह मैं कैसे बताऊँ ? वह 'पिताजी' बुलाना मतलब मेरे लिए वज्रपात ही हें |
गूढार्थ—मनुष्य स्वभाव की सदा जवान रहने की इच्छा यहाँ पर हास्य व्यग्यं के द्वारा सुभाषितकार ने हमे बतायी हें | अनंत काल से ही हमेशा जवान रहने की मानसिकता यहाँ पर हमे दिखाई देती है |
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डॉ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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