|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *पातु वः* " ( १५४)
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*श्लोक*---
" क्व तिष्ठतस्ते पितरौ ममेवेत्यपर्णयोक्ते परिहासपूर्वम् ।
क्व वा ममेव श्वशुरौ तवेति तामीरयन्सस्मितमीश्वरोऽव्यात् " ।।
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*अर्थ*----
( शंकर स्वयंभू है । उनके माता -- पिता नही है , इसपर से शंकर का मजाक करने की इच्छा पार्वती को हुई )
पार्वती मजाक से शंकर को कह रही है " मेरे जैसे माता -- पिता तो आपको है ही नही ? " इसलिये इस बारे में आप मुझसे कम ही हो ।
इस प्रश्न का उत्तर शंकर ने भी हंसते हंसते दिया । वह कह रहा है की -- " हाँ सही है पर मेरे जैसे सास -- ससुर तुम्हे भी कहाँ है ?
ऐसे हंसता हुआ शंकर जगत् की रक्षा करे ।
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*गूढ़ार्थ* ---
सुभाषितकार ने जगन्माता और पिता पर मानवीयता का आरोप लगाकर उनकी नोंक - झोक बहुत ह्रदयस्पर्शी दिखायी है ।
जो जगत के माता -- पिता है उनके कौन माता -- पिता हो सकते है ?
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डाॅ . वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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