Thursday, September 3, 2020

Multiple q & a in a single sanskrit sloka

|| *ॐ* ||
   " *सुभाषितरसास्वादः* "
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    " *अन्तरलापाः* " ( २०३ )
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    *श्लोक*---
     " कुत्रोदेत्युदयाचलस्य  तरणी  रम्या  यतिः  कस्य  खे
     कान्त्या  भान्तिच  किं  करोति  गणको  यष्टिं  विधृत्येति  कः ।
   कस्मिन्जाग्रति  जन्तवो  न च  कदा सूते  च का  कः  प्रियः ।
     शृंङ्गाग्रे  तुरगस्य  भानि  गणयन्त्यन्धौऽह्नि  वन्ध्यासुतः।। "
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   *अर्थ*---
इस  कथन  में  सभी  अशक्य  बातों  का  उल्लेख  किया  गया  है ।
घोड़े  के  सिंगपर  चांदनी  है और  वह  एक  वन्ध्या  स्त्री अंध   पुत्र  माप  रहा  है ।  अब  यह  तीन  प्रश्न ।
   किसकी  चाल  मोहक  है ?  भानि  ( चांदण्या , तारका )  क्या  करता  है ?
   छड़ी  पकडकर  कौन  चलता  है ? अंध प्राणी  किसमें  जागते  है ?
    ऐसी  कौन  है  जो  कभी  भी  प्रसूत  नही  होती ?
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*गूढ़ार्थ*---
   अब  एक  एक  पंक्ति  का  अर्थ---
  सूर्य  का  उदय  कहाँ  होता  है ?  शृङ्गाग्रे ( पर्वत के  शिखर  पर )
  किसकी  चाल  मोहक  होती  है ? घोडे की । ( तुरंग )
   कौन  चमक  रहा  है ? चांदनियां । ( भानि )
     गणिती  या  ज्योतिषी  क्या  करता  है ?  मापता  है । ( गणयति )
    कुंडली बनाकर  भविष्य  का  गणित  करता  है ।
  छडी  पकडकर  कौन  चलता  है ? अंध व्यक्ति । ( अंध )
   प्राणी कब  जागते  है ? दिन  में । ( अह्नि )
  ऐसी  कौन  है  जो  कभी  प्रसूत  नही  होती  है ?  वन्ध्या ।
   प्रिय  कौन  है ?  पुत्र । ( सुत  )
  अब  उपर  के  तीनों  पंक्तियों  का  अर्थ  लग  गया ?
चौथी इन  सब  प्रश्नों  के  उत्तर  से  तयार  हुयीं  है  लेकीन  इसका  एक  अपना  अलग  अर्थ  के   साथ  अस्तित्व  है ।
है  न  संस्कृत  भाषा  ज्ञान  के  साथ  मजेदार ?
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे  /   महाराष्ट्र      

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