|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *अन्तरलापाः* " ( २०३ )
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*श्लोक*---
" कुत्रोदेत्युदयाचलस्य तरणी रम्या यतिः कस्य खे
कान्त्या भान्तिच किं करोति गणको यष्टिं विधृत्येति कः ।
कस्मिन्जाग्रति जन्तवो न च कदा सूते च का कः प्रियः ।
शृंङ्गाग्रे तुरगस्य भानि गणयन्त्यन्धौऽह्नि वन्ध्यासुतः।। "
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*अर्थ*---
इस कथन में सभी अशक्य बातों का उल्लेख किया गया है ।
घोड़े के सिंगपर चांदनी है और वह एक वन्ध्या स्त्री अंध पुत्र माप रहा है । अब यह तीन प्रश्न ।
किसकी चाल मोहक है ? भानि ( चांदण्या , तारका ) क्या करता है ?
छड़ी पकडकर कौन चलता है ? अंध प्राणी किसमें जागते है ?
ऐसी कौन है जो कभी भी प्रसूत नही होती ?
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*गूढ़ार्थ*---
अब एक एक पंक्ति का अर्थ---
सूर्य का उदय कहाँ होता है ? शृङ्गाग्रे ( पर्वत के शिखर पर )
किसकी चाल मोहक होती है ? घोडे की । ( तुरंग )
कौन चमक रहा है ? चांदनियां । ( भानि )
गणिती या ज्योतिषी क्या करता है ? मापता है । ( गणयति )
कुंडली बनाकर भविष्य का गणित करता है ।
छडी पकडकर कौन चलता है ? अंध व्यक्ति । ( अंध )
प्राणी कब जागते है ? दिन में । ( अह्नि )
ऐसी कौन है जो कभी प्रसूत नही होती है ? वन्ध्या ।
प्रिय कौन है ? पुत्र । ( सुत )
अब उपर के तीनों पंक्तियों का अर्थ लग गया ?
चौथी इन सब प्रश्नों के उत्तर से तयार हुयीं है लेकीन इसका एक अपना अलग अर्थ के साथ अस्तित्व है ।
है न संस्कृत भाषा ज्ञान के साथ मजेदार ?
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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