Friday, August 14, 2020

Pandit sabha & Raja sabha - sanskrit subhashitam

|| *ॐ* ||
    " *सुभाषितरसास्वादः* "
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   " *कविस्तुति* " ( १६९ )
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  *श्लोक*----
   " रात्रिर्नीरजनिकरा  नीरजनिकरापरिष्कृता  सरसी ।
    अपि  भजते  न  वरसभा  नवरसभावज्ञवर्जिता  शोभाम् " ।।
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   *अर्थ*---
   चन्द्र  विना  रात्र -- कमलसमुदाय  विना सरोवर ,  और  नवरस  भाव  जाननेवालों  के  विना  पंडितसभा -- राजसभा  सुशोभित  नही  होती ।
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   *गूढ़ार्थ*---
    सुभाषितकार  ने  बडी  ही  सुन्दरता  प्रस्तुत  श्लोक  में  कवी  माहात्म्य  कहा  है ।  निर्= नही ,  रजनीकर = चन्द्र , नीरज = कमल , निकर = समुदाय , वरसभा = पंडितों  की  सभा , नव -रस - भावज्ञ = नऊ  रसों  के  भाव  जाननेवाले ।  
इस तरह  से  कवी  के  विना  पंडितसभा -- राजसभा  हो  ही  नही  सकती ।
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   *卐卐ॐॐ卐卐*
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  डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे  /   महाराष्ट्र 
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