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" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *सामान्यनीति* " ( १९७ )
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"विना गोरसं को रसो भोजनानां विना गोरसं को रसो भूपतीनाम्।
विना गोरसं को रसः कामिनीनां विना गोरसं को रसः पण्डितानाम्"।।
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अर्थ--गोरस (गाय का दूध ) अगर नही है तो भोजन में क्या मजा? गोरस( पृथ्वी रूपी संपत्ति) नही है तो राजाओं को राज्य में क्या रस?
गोरस(प्रेम) नही तो स्त्रियों को जीवन में क्या मजा?
गोरस( वाक्चातुर्य) नही होगा तो विद्वानों को वादविवाद मे क्या रस?
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सुभाषितकार के बुद्धी का कमाल एक 'गोरस' शब्द पर कितना सारा लिख दिया?
'गोरस'=(१)गाय का दूध (२) पृथ्वी रूपी संपत्ति (३)प्रेम (४) वाक्चातुर्य।
कितने सुन्दर तरीके से यहाँ पर श्लेष अलंकार का प्रयोग सुभाषितकार ने किया है।
संस्कृत भाषा और सुभाषित हमारी संस्कृति के वो रत्न है जिसके प्रकाश से बुद्धि चमक उठती है।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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