Thursday, November 21, 2019

Menstruation of rivers - Sanskrit

मासद्वयं श्रावणादि
सर्वा नद्यो रजस्वलाः।
तासु स्नानं न कुर्वीत,
वर्जयित्वा समुद्रगाः।।
धनुः सहस्त्राण्यष्टौ तु
गतिर्यासां न विद्यते।
न ता नदी शब्दवहा
गर्तास्ताः परिकीर्तिताः।।
उपाकर्मणि चोत्सर्गे
प्रेतस्नाने तथैव च।
चन्द्र सूर्यग्रहे चैव,
रजदोषो न विद्यते।।
उपाकर्मणि चोत्सर्गे
स्नानार्थ ब्रह्मवादिनः।
पिपासू ननु गच्छंति
संतुष्टाः स्वशरीरिणः।।
वेदाश्छन्दांसि सर्वाणि
ब्रह्माद्याश्च दिवौकसः।
जलार्थिनोSथ पितरो,
मरीच्याद्यास्तथर्षयः।।
समागमस्तु तत्रैषां
तत्र हत्यादयो मलाः।
नूनं सर्वे क्षयं यान्ति
किमुतैकं नदीरजः।।

अर्थात :- श्रावण और भाद्रपद, इन दो मासों में नदियाँ 'रजस्वला' हो जाती हैं। अतः समुद्रगामिनी नदियों को छोड़कर, शेष किसी भी नदी में इन दो मासो में स्नान न करें| जो नदियाँ आठ हजार धनु की दूरी तक नहीं जातीं (बहती), वे नदी शब्द से नहीं बहतीं, इस कारण उन्हें नदी नहीं 'गर्त' या गड्ढा कहते हैं| उपाकर्म और उत्सर्ग (श्रावणी कर्म) प्रेत के निमित्त (दाह संस्कार के बाद या प्रेत क्रिया के अंतर्गत) चन्द्रमा या सूर्य के ग्रहण काल में नदियों का 'रजस्वला दोष' नहीं माना जाता इन परिस्थितियों में नदी स्नान वर्जित नहीं है| उपाकर्म और उत्सर्ग में ब्रह्मवादी जन, पितृगण और मरीचि इत्यादि ऋषिगण वेद, सम्पूर्ण छन्द, ब्रह्मादि देवता इत्यादि उपस्थित रहते हैं| इस समागम से हत्या जैसे पाप धुल जाते हैं तब फिर नदियों का रजस्वला दोष, क्यों न नष्ट हो जायेगा?  अर्थात् उपाकर्म और प्रेत कार्य में नदियों का 'रजदोष' नहीं मानना चाहिए।
स्रोत - कात्यायन स्मृति/अध्याय-१०, श्लोक संख्या- ५ से १०।
🙏🌻🌺मङ्गलं सुप्रभातम्🌺🌻🙏

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