||ॐ||
" सुभाषित रसास्वाद "(२४)
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" सज्जन-- प्रशंसा "
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श्लोक---
" दन्तिदन्तसमानं हि निःसृतं महतां वचः।
कूर्मग्रीवेण नीचानां पुनरायति याति च " ।।
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अर्थ---
महापुरुषों के वचन ( शब्द) हत्ती के दांत जैसे होते है ।
हत्ती का दांत बाहर निकला हुआ और स्पष्ट दिखाई देता है ।
इसके विपरीत नीच जनों के वचन (शब्द) होते है ।
जो कछुएं के समान होते है ।
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गूढार्थ---
सज्जनों के शब्द और वचन यह हांथी दांत के समान स्पष्ट और दृढ होते है । जो कभी भी अपने वक्तव्य से पलटते नही है ।
इसके विपरीत नीच जनों के वचन और शब्द होते है जिसकी तुलना में सुभाषितकार ने कछुएं से की है । जो अत्यंत सार्थ है क्यों की कछुआ अपनी गर्दन कभी अंदर तो कभी बाहर रखते है ।
वैसे ही नीच लोग कब वचन से पलटेंगे और शब्द बदलेंगे इसका कोई भरोसा नही होता ।
अत्यंत समर्पक शब्दों में सुभाषितकार ने सज्जन और दुर्जन का भेद स्पष्ट किया है ।
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卐卐ॐॐ卐卐
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
" सुभाषित रसास्वाद "(२४)
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" सज्जन-- प्रशंसा "
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श्लोक---
" दन्तिदन्तसमानं हि निःसृतं महतां वचः।
कूर्मग्रीवेण नीचानां पुनरायति याति च " ।।
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अर्थ---
महापुरुषों के वचन ( शब्द) हत्ती के दांत जैसे होते है ।
हत्ती का दांत बाहर निकला हुआ और स्पष्ट दिखाई देता है ।
इसके विपरीत नीच जनों के वचन (शब्द) होते है ।
जो कछुएं के समान होते है ।
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गूढार्थ---
सज्जनों के शब्द और वचन यह हांथी दांत के समान स्पष्ट और दृढ होते है । जो कभी भी अपने वक्तव्य से पलटते नही है ।
इसके विपरीत नीच जनों के वचन और शब्द होते है जिसकी तुलना में सुभाषितकार ने कछुएं से की है । जो अत्यंत सार्थ है क्यों की कछुआ अपनी गर्दन कभी अंदर तो कभी बाहर रखते है ।
वैसे ही नीच लोग कब वचन से पलटेंगे और शब्द बदलेंगे इसका कोई भरोसा नही होता ।
अत्यंत समर्पक शब्दों में सुभाषितकार ने सज्जन और दुर्जन का भेद स्पष्ट किया है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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