||ॐ||
" सुभाषित रसास्वाद"(२०)
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"कूटप्रश्न"।
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श्लोक---
" सरसो विपरीतश्चेत्सरसत्वं न मुञ्चति ।
साक्षरा विपरीताश्चेद्राक्षसा एव केवलम्"।।
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अर्थ---
सरस विपरीत हो गया तो ( उलटा पढा तो) भी सरस ही रहता है ।
किन्तु साक्षर यदि विपरीत पढ़ा तो वह राक्षस होता है ।
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गूढार्थ---
सरस शब्द उलटा पढा तो वह सरस ही रहता है । जैसे जो स्वभाव से ही रसिक या सज्जन को क्रोध भी आया तो वह अपनी रसिकता का या सज्जनता का त्याग कभी नही करेगा ।
किन्तु साक्षर का उलटा शब्द राक्षस होता है जैसे की किसी नीरस अथवा रूक्ष पंडित और दुर्जन को क्रोध आने के बाद वह जो कृत्य या किसीपर टीका करते है वह राक्षस के जैसा ही क्रूर होता है ।
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卐卐ॐॐ卐卐
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
" सुभाषित रसास्वाद"(२०)
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"कूटप्रश्न"।
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श्लोक---
" सरसो विपरीतश्चेत्सरसत्वं न मुञ्चति ।
साक्षरा विपरीताश्चेद्राक्षसा एव केवलम्"।।
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अर्थ---
सरस विपरीत हो गया तो ( उलटा पढा तो) भी सरस ही रहता है ।
किन्तु साक्षर यदि विपरीत पढ़ा तो वह राक्षस होता है ।
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गूढार्थ---
सरस शब्द उलटा पढा तो वह सरस ही रहता है । जैसे जो स्वभाव से ही रसिक या सज्जन को क्रोध भी आया तो वह अपनी रसिकता का या सज्जनता का त्याग कभी नही करेगा ।
किन्तु साक्षर का उलटा शब्द राक्षस होता है जैसे की किसी नीरस अथवा रूक्ष पंडित और दुर्जन को क्रोध आने के बाद वह जो कृत्य या किसीपर टीका करते है वह राक्षस के जैसा ही क्रूर होता है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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