दशाननेन काञचनस्य निर्मितं पुरं हि यत्
ददाह लीलया सुसेवकः रघूत्तमस्य तत्।
विदेहनन्दिनीकृपाष्टसिद्धिदायकं कपिं
नमामि वायुपुत्रमौरसं शिवांशजं प्रभुम्।।
छन्दः-- पञ्चचामरम्
----मार्कण्डेयो रवीन्द्र:
दशानन रावण की स्वर्ण निर्मित लङ्का को रघुकुल श्रेष्ठ श्री राम के जिस दूत ने खेल खेल में जला दिया था, जनकपुत्री सीता की कृपा से जिसे अष्ट सिद्धिदायक का वरदान प्राप्त हुआ, उन वायुपुत्र शिव के अंश हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूं।
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