तन्नो गृहं यत्र न सन्ति नार्य:
नार्यो न ता: यासु च नास्ति लज्जा।
लज्जा न सा यत्र गुरोर्न मान:
मानो न स: यत्र हि नास्ति काम:।।
वह घर नहीं जहाँ स्त्रियाँ नहीं हैं। वे स्त्रियाँ नहीं जिनमें शर्म नहीं है।वह शर्म नहीं जिसमें बड़ों का आदर नहीं वह आदर नहीं जिसमें प्यार नहीं।
जोगेन्द्रकुमार:
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