Thursday, October 21, 2021

Intelligence & strength - Yajur veda

वेद धारा
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यत्र ब्रह्म च क्षत्रं च सम्यक्चौ चरत: सह ।
तं लोकं पुण्यं प्रज्ञेष° यत्र देवा: सहाग्निना ।।   
                             । - यजुर्वेद. २०/२५

शब्दार्थ: *(यत्र)* जहां पर, *(ब्रह्म)* ज्ञान *(च)* और *(क्षत्रम्)* बल *(सम्यांच्चौ)* दोनो साथ मिलकर, *(चरतः)* चलते है, *(च)* और *(यत्र)* जहां *(देवा:)* विद्वान व्यक्ति, *(सह अग्निना)* तेज के साथ कार्य करते हैं, *(तम्)* उस *(लोकम्)* समाज/राष्ट्र को, *(पुण्यम्)* पाप रहित सुखी, *(प्रज्ञेषम्)* प्रकृष्ट रूप से जानता हूं, समझता हूं ।

भावार्थ: कौन समाज, कौन राष्ट्र सुखी, समृद्ध, निर्भय, स्वाधीन, चिंता रहित बनना नहीं चाहता ? सभी चाहते हैं कि हमारे समाज या राष्ट्र में प्रेम, विश्वास, अभयता, निश्चलता तथा शांति की स्थापना हो और सर्वत्र प्रगतिशीलता, सुव्यवस्थितता दिखाई दे । 
वेद में सुराष्ट्र के स्थापन के लिए इस मंत्र में निर्दिष्ट उपाय बताया गया है ।  

राष्ट्र एक रथ है । इसके दो पहिए है । यदि रथ के पहिए समान रूप से ठीक चलेंगे तो अपने गंतव्य स्थान = पुण्यलोक को प्राप्त करेंगे । ब्रह्म और क्षत्र राष्ट्ररथ के दो पहिए हैं । यदि वेदवेत्ता ब्राह्मण (ज्ञान शक्ति) तथा शूरवीर (बल शक्ति) परस्पर मिलकर बुद्धिमत्ता से दृढ़ता से पुरुषार्थ करे तो समाज और राष्ट्र में उत्तम सुख - समृद्धि का साम्राज्य स्थापित हो सकता है । ज्ञानीजन को *ब्रह्म* कहा जाता है । जो तेज, धर्म, कर्तव्य, सत्य, न्याय, तप, सेवा, सदाचार से युक्त है उसको *ब्रह्म* शब्द से जाना जाता है । जो बल, पराक्रम, साहस, तेजस्विता, वीरता, न्याय, प्रबंधन आदि गुणों से युक्त हो उसे *क्षत्र* समजना चाहिए ।

   अकेला ज्ञान जीवन को सुंदर नहीं बनाता और अकेला बल भी जीवन को सफल नहीं बनाता । दोनो का संगतिकरण - सामंजस्य ही राष्ट्र जीवन में रंग लाता हैं । ज्ञान बल और शक्ति बल परस्पर प्रेम, विश्वास, निष्ठा के साथ जुड़ने से तथा दुर्जनो के लिए भारी दंड व्यवस्था लागू करने से समाज व राष्ट्र मे व्याप्त दुराचार, व्यभिचार, भ्रष्टाचार, अंधविश्वास, पाखंड, धूर्तता, लम्पटता आदि प्रवृत्तियां रुक जाती हैं और समाज व राष्ट्र स्वर्ग समान आदर्श, प्रशंसनीय तथा अनुकरणीय बन जाता हैं ।

   मंत्र में परमात्मा खुद आगे कहते है कि जहां देवगण अग्नि के साथ विचरण करते है, वहां प्रजा पुण्य लोक = सुख साम्राज्य को बहुत अच्छी तरह प्राप्त करते हैं, ऐसा मै जानता हूं । 
यहां राजा *अग्नि* है और विद्वान मंत्रीवर्ग, प्रजा आदि *देव* है, दोनो को साथ मिलकर काम करना होता हैं । ये दोनों भी राष्ट्र रथ के दो पहिए हैं । दोनो में अविरोध होने से राष्ट्र रूपी रथ (ब्रह्म अग्नि) सुख और आनंद से आप्लावित रहता है । *यदि नेतागण तथा प्रजा संयुक्त रूप से राष्ट्र अग्नि की उपासना करते है अर्थात राष्ट्र हित को सर्वोपरि मानते हैं तो राष्ट्र सुरक्षित, मजबूत तथा प्रगतिशील बनता हैं ।* नेतागण तथा प्रजा के सहयोग से राजा अपने राष्ट्र को आंतरराष्ट्रीय गौरव प्राप्त करवाता हैं और समग्र विश्व में एक विशेष दबदबा खड़ा कर देता हैं ।

   राष्ट्र में ज्ञान का सम्यक विकास हो, कोई भी अनपढ़ न रहे उस प्रकार की शैक्षणिक संस्था, विद्यालयों, कला कौशल केंद्रों आदि खोली जानी चाहिए । साथोसाथ प्रजा स्वस्थ और ओजस्वी बने इसलिए राजा और मंत्रीगण अपने विश्वस्त सूत्रों के माध्यम से जगह जगह स्वच्छता अभियान केंद्र, रोग चिकित्सालय, योगासन शिविर करवानी चाहिए तथा उत्तम खानपान का प्रबंध - सुव्यवस्थित वितरण व्यवस्था आदि करना चाहिए । स्थान स्थान पर व्यायामशालाएं, सैनिक ट्रेनिंग सेंटर आदि भी चलायमान करने चाहिए जिससे प्रजा उत्तम ज्ञान के साथ बलिष्ठ और तेजस्वी भी बने ।

    राष्ट्र में विशेष रूप से सर्वाधिक सम्मान वेद आदि ज्ञान से समृद्ध विद्वानों का तथा देश की सुरक्षा के लिए दुश्मनों से लड़ रहे वीर सैनिकों को दिया जाना चाहिए । पूरे राष्ट्र के अंदर सुख, शांति, निर्भयता तथा विश्वास सभर वातावरण बना रहे और दुष्ट जन / शत्रुगण सदा भयभीत बने रहे इस हेतु वेद तथा मनुस्मृति अनुसार कठोर दंड व्यवस्था लागु करनी चाहिए । नगर जन, ग्राम्य जन, श्रमिक वर्ग, नारी वृंद, वृद्ध जन आदि के लिए विविध प्रकार की कल्याणकारी योजनाएं चलायमान करनी चाहिए । राजा को प्रजा पर अधिक टैक्स का भार भी नहीं डालना चाहिए जिससे प्रजा में विरोध न हो । 

   समाज व राष्ट्र में स्वर्ग = सुख विशेष स्थापित हो इस हेतु ब्राह्मतेज और क्षात्रतेज से युक्त राज्याधिकारी, प्रधान, मंत्री, धारासभ्य, सांसद, विधि वेत्ता सभी एक मतवाले हो जाय और सभी में केवल राष्ट्र हित प्रधान बना रहे, ऐसा प्रयास निरंतर राजा को करते रहना चाहिए । *यथा राजा तथा प्रजा* उस अनुसार श्रेष्ठता, विधिविधान आदि व्यवस्था ऊपर से निम्न स्तर तक पहुंचती हैं । प्रजा भी सुशासन के लिए सदा जागृत रहनी चाहिए ।

   परमात्मा से हम प्रार्थना करे कि *हमारे राष्ट्र में ज्ञानबल के साथ क्षात्रबल भी उन्नत हो । हमारे धर्म गुरुजन हमे वीरता पूर्वक जीना सिखाएं, कायर तथा पराधीन न बनाएं । हम सब साथ मिलकर आसुरी शक्तियों का विध्वंश करे और सज्जनों को सहयोग करके राष्ट्र को समर्थ एवम् गौरवमय बनाएं ।*

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