Monday, February 22, 2021

Stree neethi - Sanskrit subhashitam

|| *ॐ* ||
     " *सुभाषितरसास्वादः* " 
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    " *स्त्रीनीति* " ( ११६ )
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 *श्लोक*----
   " नूनं  कविवरा  विपरीतबोधा
       ये  नित्यमाहुरबला  इति  कामिनीस्ताः।
        याभिर्विलोलतरतारकदृष्टिपातैः
       शक्रादयोऽपि  विजितास्त्वबलाः  कथं  ताः? " ।।
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*अर्थ*-----
   जो  थोर  कवी  कामिनी  को  'अबला '  ऐसे  नित्य  कहते  है ।  वह तो  मुझे  पगले  ही  लगते  है ।  अहो !  जिसकी  तारों  समान  चञ्चल  ऐसी  दृष्टि सिर्फ पडने  से  मात्र  इन्द्रसमान  देवों  के  राजे  भी  जिते  जाते  है  ।
तो  फिर  वह  स्त्री ' अबला '  कैसे  हुयी ?
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*गूढ़ार्थ*-----
 स्त्री  के  श्रेष्ठत्व  और  सौन्दर्य  का  वर्णन  यहाँ  पर  कवी ने  किया  है ।
 खास  करके  स्त्री  के  नयनों  से बाण  चलाने  की  कला  को  सुभाषितकार ने  यहाँ  पर  कहा है ।  सुभाषितकार  कह  रहा  है  कि-- स्त्री  को अबला  कहने  वाले  कवी मुझे  पागल  ही  लगते  है , उसकी  एक  तारों  जैसी  नजर  से  इन्द्र  जो  देवों  के  राजा  है  वह  भी  नही  बचे  वह  भी  घायल  हो गये  तो  सामान्य  लोगों  की  क्या  कथा ?  जो  नारी  केवल  नजर  से  सब  को  जीतती  है  वह  'अबला ' कैसे  हुई ?
संस्कृत  काव्य में  स्त्री  के  उपर  जितनी  रचनायें  है  शायद  ही  जगत  के  अन्य  वाड्मय  में होगी ।
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 *卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे  /   महाराष्ट्र 
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