|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *स्त्रीनीति* " ( ११६ )
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*श्लोक*----
" नूनं कविवरा विपरीतबोधा
ये नित्यमाहुरबला इति कामिनीस्ताः।
याभिर्विलोलतरतारकदृष्टिपातैः
शक्रादयोऽपि विजितास्त्वबलाः कथं ताः? " ।।
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*अर्थ*-----
जो थोर कवी कामिनी को 'अबला ' ऐसे नित्य कहते है । वह तो मुझे पगले ही लगते है । अहो ! जिसकी तारों समान चञ्चल ऐसी दृष्टि सिर्फ पडने से मात्र इन्द्रसमान देवों के राजे भी जिते जाते है ।
तो फिर वह स्त्री ' अबला ' कैसे हुयी ?
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*गूढ़ार्थ*-----
स्त्री के श्रेष्ठत्व और सौन्दर्य का वर्णन यहाँ पर कवी ने किया है ।
खास करके स्त्री के नयनों से बाण चलाने की कला को सुभाषितकार ने यहाँ पर कहा है । सुभाषितकार कह रहा है कि-- स्त्री को अबला कहने वाले कवी मुझे पागल ही लगते है , उसकी एक तारों जैसी नजर से इन्द्र जो देवों के राजा है वह भी नही बचे वह भी घायल हो गये तो सामान्य लोगों की क्या कथा ? जो नारी केवल नजर से सब को जीतती है वह 'अबला ' कैसे हुई ?
संस्कृत काव्य में स्त्री के उपर जितनी रचनायें है शायद ही जगत के अन्य वाड्मय में होगी ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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