Tuesday, September 8, 2020

Seshnag- Sanskrit subhashitam

|| *ॐ* ||
    " *सुभाषितरसास्वादः* " 
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       " *शेषान्योक्ति* " ( १७७ )
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   *श्लोक*-----
    " युक्तोऽसि  भुवनभारे  मा  वक्रां  वितनु  कन्धरां  शेष!
      त्वय्येकस्मिन्  कष्टिनि  सुखितानि  भवन्ति  भुवनानि  " ।।
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   *अर्थ*----
    हे  शेषा !  भुवनों  का  भार  उठाने  के  लिये  ही  आपकी  नियुक्ति  की  गयी  है ।  इसलिये  आप  थोडा  भी  मत  हिलना --डुलना  अगर  आपने  थोडी  भी  कंधा  या  मुण्डी  हिलायी  तो  !  ऐसा  मत  करना ।  आप  कष्ट  में  हो  इसलिये  सारी  भुवने   सुखी  है ।  
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*गूढ़ार्थ*-----
   शेष  के  आड  से  सुभाषितकार ने  हमे  किसी  संस्था  या  घर  के  कर्ता  की  स्थिति  बतायी  है ।  एक  के  ही  आधार  पर  चल  रही  संस्था  में  अगर  प्रमुख  कार्यकर्ता  ने  मदद  का  हाथ  निकाल  लिया  तो  संस्था  की  स्थिति  गडबडा  जायेगी ।  या  फिर एकत्र  कुटुंब मे   कुटुंब  प्रमुख  को  एक  क्षणभर  की  भी  विश्रांति  नही  मिलती  या  फिर  वह  अपने  कर्तव्य  में  थोडी   भी  चूक  नही  कर  सकता  अगर   उसने  थोडी  भी  मुण्डी  हिलायी  तो  सब  गडबडी   हो  जायेगी ।
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*卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे  /   महाराष्ट्र 
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