|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *स्त्री-प्रशंसा* " ( २९१ )
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*श्लोक*---
" स्मितेन भावेन च लज्जया भिया
पराङ्मुखैरर्थकटाक्षवीक्षणैः ।
वचोभिरीर्ष्याकलहेन लीलया
समस्तभावैः खलु बन्धनं स्त्रियः ।। "
( भर्तृहरिसुभाषितसंग्रहः )
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*अर्थ*---
स्त्रियों की सब क्रियायें बन्धन में बान्धनेवाली ही होती है ।
उनका मोहक हास्य , उनके मोहक हाव -भाव , उनकी लज्जा , उनका घबराना , मुंह फेरकर हंसना , कटाक्ष डालना , उनका बोलना , रूठना यह सभी क्रियायें ( लीला ) पुरुष को मोहजाल में उलझाती है । उनका हास्य भी बन्धन में डालनेवाला ही है ! कैसी लीला है यह!
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*गूढ़ार्थ*----
कितने सुन्दर तरीके से यहाँ पर स्त्री की प्रशंसा की गयी है ।
लेकीन यह पढने के बाद मेरे मन में यह विचार भी आया की --
सच में स्त्रियों का इतनी बारकीसे वर्णन करने वाला कितना रसिक पति / प्रेमी होगा ? ऐसा पुरुषोत्तम जीवन में मिलना भी भाग्य का ही लक्षण है । शायद पुरातन काल में ऐसे रसिक हो गये होंगे ।
स्त्री की प्रशंसा करना और उसे खुश करके जितना कोई आसान काम नही है । अस्तु इत्यलम्।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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