*३९४ . ।। पात्रता ।।*
*नाम्भोधिरर्थितामेति*
*सदाम्भोभिश्च पूर्यते ।*
*आत्मा तु पात्रतां नेय:*
*पात्रमायान्ति संपद: ॥*
समुद्र कधीही पाण्यासाठी कोणाकडे भिक्षा मागत नाही , तरी देखील तो नेहमी पाण्याने भरलेला असतो . आपण जर स्वतःला योग्य बनविले तर सर्व साधने आपल्याकडे स्वतःहून चालत येतात .
सागर कभी जल के लिए भिक्षा नही मांगता फिर भी वह सदैव जल से भरा रहता है । यदि हम अपने आप को योग्य बना दे तो सब साधन स्वयं ही हमारे पास आ जाते हैं ।
An ocean never begs for water , yet it is always full of water . If one makes oneself worthy , riches come to the worthy person by themselves .
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