|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *विषयनीति* " ( २१८ )
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*श्लोक*----
" सहवर्धितयोर्नास्ति सम्बन्धः प्राणकाययोः ।
पुत्रमित्रकलत्रेषु सम्बन्धित्वकथैव का ? ।। "
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*अर्थ*-----
प्रत्यक्ष प्राण और देह एकसाथ ( एकजीवता ) या एकत्र बढकर भी,
मृत्यु के पश्चात उनका सम्बन्ध नही रहता । फिर भी मनुष्य पुत्र , मित्र , पत्नी के साथ जो सम्बन्ध रहता है उसकी तो क्या बात करनी चाहिए ?
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*गूढ़ार्थ*-----
प्राण और देह एकसाथ और एकत्र रहने बाद भी और साथ में बढकर भी मृत्यु के पश्चात उनका कोई सम्बन्ध नही रहता और मनुष्य पुत्र , मित्र, पत्नी इनके साथ जन्म-जन्मांतर के सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न करता है। यह सम्बन्ध चिरकाल तो बिलकुल ही नही किन्तु प्राण और देह मतलब मनुष्य के आयु इतने तो भी दीर्घकाल कैसे टिकेंगे ?
सुभाषितकार ने हमारी आंखों में अञ्जन ही डाला है । हम हमारे रिश्तों पर कितने इतराते है । यह मेरा मित्र यह मेरा परिवार ।
किन्तु सब कुछ कमलपत्ते पर गिरे हुए बुंद के समान ही है।
स्थायी और चिरकाल कुछ भी तो नही ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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