|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *सामान्यनिति* " ( २०९ )
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*श्लोक*----
" न जातु कामात् , न भयात् न लोभात् ।
धर्मं त्यजेत् जीवितस्य अपि हेतोः ।।
नित्यो धर्मः सुखदुःखे तु अनित्ये ।
जीवो नित्यः हेतुः अस्य तु अनित्य ।। ( महाभारत पर्व १८ )
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*अर्थ*----
विषयभोग के लिये या भय के कारण अथवा लोभ के कारण अथवा जीव बचाने के लिये भी धर्म नही छोड़ना चाहिए । क्यों कि धर्म नित्य है ; किन्तु सुख और दुःख अनित्य है । जीव ( आत्मा ) नित्य है ; किन्तु उसका हेतु देहप्राप्ती का कारण माया अनित्य है ।
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*गूढ़ार्थ*----
यह महाभारत का आखरी का साररूप श्लोक है । जिसमे एक ही श्लोक में धर्म और आत्मा का नित्यत्व बताया गया है ।
वैसे भी महाभारत में भाई - भाई के युद्ध के साथ ही बहुत सी ज्ञानात्मक बाते भी आयी है ।
रामायण में आदर्शवाद और महाभारत में वास्तववाद ही है।
दोनों ही हमारे संस्कृति की बहुमुल्य धरोहर है ।
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डाॅ . वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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