Thursday, June 18, 2020

What is the real profit and loss? - Sanskrit Subhashitam

|| *ॐ* ||
   " *सुभाषितरसास्वादः* " 
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   " *सामान्यनीतिः* "  ( १८६ )
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    *श्लोक*----
   " को लाभो  गुणिसंगमः किमसुखं  प्राज्ञैतरैः  संगतिः
     का  हानिः  समयच्युतिर्निपुणता का  धर्मतत्त्वे  रतिः।
    कः  शूरो  विजेतेन्द्रियः  प्रियतमा  यानुव्रता  किं  धनं 
     विद्या  किं  सुखमप्रवासगमनं  राज्यं  किमाज्ञाफलम् ।। ( नीतिशतकम् )
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    *अर्थ*----
  सच्चा  लाभ  कौनसा ? गुणीजनों  की सङ्गति।  सच्चा दुःख  कौनसा ? मूर्खों  का सहवास ।  बडी  हानी  कौनसी ? समय  निकल  जाना ।
   या  आयी  हुई  संधी  का  लाभ  उठा  न  सकना ।  सच्चा  नैपुण्य  कौनसा ?  धर्मविषयी  प्रिती ।  सच्चा  शूर कौन ?  जिसने  इन्द्रियों पर  विजय  पा  ली  है  वह ।  सच्ची  पत्नी  किसे  कहना  चाहिये ?  जो  हमेशा  पति  का  अनुगमन  करती  है  वह ।  सच्चा  धन  कौनसा ?  विद्या ।
   सच्चा  सुख  कौनसा ?  प्रवास  को  ना  जाना ।  सच्चा  राज्य  कौनसा ? जहाँ  पर  राजाज्ञा  का  पालन  होता  है ।
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   *गूढ़ार्थ*---- 
यहाँ  पर  बाकी  सब  तो  सुभाषितकार  ने   सही  बताये  है  पर  सच्चा  सुख  कौनसा ?  प्रवास  को  न  जाना ।  यह  जरा  विपरित  लगता  है  न?
  तो  इसका  उत्तर  यह  है  कि -- चारो  आश्रमों  में  से  गृहस्थाश्रम  में  प्रवास  सबसे  कम  करना  चाहिये  ऐसा  सङ्केत  है ।  ब्रह्मचारी  और  संन्यासाश्रम  में   सबसे  ज्यादा  प्रवास  करने  के  लिये  कहा  गया  है  और वानप्रस्थाश्रम  में  तपस्या  का  महत्व  है । गृहस्थाश्रम  में  पञ्चमहायज्ञों का  पालन  करते  हुए  स्थैर्य  का  महत्व  अधिक  है ।
बाकी  तो  सब  पढ़कर  ही  समझ  में  आता  है ।
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे  /  महाराष्ट्र 
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