|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *जगन्मोहिन्या सौन्दर्य* " ( स्त्री सौन्दर्य ) ( १४९)
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*श्लोक*----
" अनेन रम्भोरु तवानेन
तुषारभानोस्तुलया धृतस्य ।
ऊनस्य नूनं प्रतिपूरणाय
ताराः स्फुरन्ति प्रतिमानखण्डाः " ।।
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*अर्थ*---
प्रिये ! आपका निर्मल मुखचन्द्र तराजू के एक बाजू में और तारापति चन्द्र दूसरे बाजू में तौल कर देख रहा था तो चन्द्र का सौन्दर्य कम भरा इसलिए उसका वजन बढाने के लिए ही छोटे छोटे यह तारे वजन के रूप में चमक रहे है ऐसा लग रहा है ।
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*गूढ़ार्थ*---
संस्कृत साहित्य में स्त्री को जगन्मोहिनी कहा गया है और उसके सौन्दर्य का बहुत सुन्दर वर्णन मिलता है । संस्कृत कवियों का ह्रदय इस बारे में बहुत ही उदार और शृंगारिक है । उनके एक से एक वर्णन और उपमा पढने लायक ही है । यहाँ पर भी चन्द्र से भी सुन्दर अपनी प्रिया है ऐसा कोई प्रियकर कह रहा है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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