Tuesday, May 19, 2020

Moon’s reflection on Ganga - Sanskrit subhashitam

|| *ॐ* ||
    " *सुभाषितरसास्वादः* "
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     " *समस्यापूर्ति* " ( १८८)
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    *श्लोक*----
   " चलत्तरङ्गरङ्गायां  गङ्गायां  प्रतिबिम्बितम् ।
    सचन्द्रं  शोभतेऽत्यन्तं  शतचन्द्रं  नभस्तलम् " ।।
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   *अर्थ*----
   आकाश  में  एक  साथ  सौ  चन्द्र  कैसे  दिख  रहे  है ?  ऐसा  कोई  किसिको प्रश्न  पूँछ  रहा  है ।  दुसरा  कवी  व्यक्ति  उसे  उत्तर  दे  रहा  है।
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   *गूढ़ार्थ*---- ( समस्या  की  पूर्ति )
गङ्गा की  हिलते  हुए  तरङ्गो  पर  जब  चन्द्र  प्रतिबिम्बित  होता  है  तब  ऐसी  विलक्षण  शोभा  देखने  को  मिलती  है ।  ऐसा  लग  रहा  है  कि आकाश  में  सौ  चन्द्रोंदय  हो  गये  है ।
सुभाषितकार ने  कितनी  सुन्दरता  से  गङ्गा  के  निर्मल  और  पवित्र  जल  का  वर्णन  हमे  कराया  है।  आर-- पार  गङ्गा  स्वच्छ  है  इसलिए  उसमें  इतने  ऊंचे  आकाशस्थ  चन्द्र  का  प्रतिबिम्ब  भी  दिख  जाता  है ।
   यह  पढ़ने  के  बाद  मेरे  मन  में  एक  विचार  आया  इतना  ही  स्वच्छ  और  निर्मल  मनुष्य  का  ह्रदय  होता  तो ?
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   *卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे  /  महाराष्ट्र 
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