|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *समस्यापूर्ति* " ( १८८)
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*श्लोक*----
" चलत्तरङ्गरङ्गायां गङ्गायां प्रतिबिम्बितम् ।
सचन्द्रं शोभतेऽत्यन्तं शतचन्द्रं नभस्तलम् " ।।
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*अर्थ*----
आकाश में एक साथ सौ चन्द्र कैसे दिख रहे है ? ऐसा कोई किसिको प्रश्न पूँछ रहा है । दुसरा कवी व्यक्ति उसे उत्तर दे रहा है।
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*गूढ़ार्थ*---- ( समस्या की पूर्ति )
गङ्गा की हिलते हुए तरङ्गो पर जब चन्द्र प्रतिबिम्बित होता है तब ऐसी विलक्षण शोभा देखने को मिलती है । ऐसा लग रहा है कि आकाश में सौ चन्द्रोंदय हो गये है ।
सुभाषितकार ने कितनी सुन्दरता से गङ्गा के निर्मल और पवित्र जल का वर्णन हमे कराया है। आर-- पार गङ्गा स्वच्छ है इसलिए उसमें इतने ऊंचे आकाशस्थ चन्द्र का प्रतिबिम्ब भी दिख जाता है ।
यह पढ़ने के बाद मेरे मन में एक विचार आया इतना ही स्वच्छ और निर्मल मनुष्य का ह्रदय होता तो ?
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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