|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* " ---------------------------------------------------------------------------------------
" *कोकिल--अन्योक्ति* " ( १९२ )
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*श्लोक*----
"भद्रं भद्रं कृतं मौनं कोकिलैर्जलदागमे ।
वक्तारो दर्दुरा यत्र तत्र मौनं हि शोभते " ।। ( नीतिरत्नम् )
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*अर्थ*---
हे कोकिले ! वर्षाऋतु आने के कारण तुमने मौन धारण किया यह अच्छा ही हो गया । क्यों कि जहाँ पर मेंढक टरटराते है वहाँ पर तेरे जैसे लोगों का मौन रहना ही श्रेयस्कर है ।
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*गूढ़ार्थ*-----
सुभाषितकार ने कोकिल के उदाहरण से विद्वान मनुष्य और अल्पज्ञ इनकी तुलना की है । अल्पज्ञ मेंढक जैसा टरटराते रहता है तब विद्वानों ने मौन रहना ही उचित है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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