Monday, February 24, 2020

Palaasa tree-Sanskrit

|| *ॐ* ||
      " *सुभाषितरसास्वादः* "
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    " *मधुकर(भ्रमर)अन्योक्ति* " ( १०७ )
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*श्लोक*-----
  " पलाशकुसुमभ्रान्त्या  शुकतुण्डे  पतत्यलिः ।
    सोऽपि  जम्बूफलभ्रान्त्या  तमलिं  धर्तुमिच्छति " ।। 
           कुवलयानन्दः ( अप्पय  दीक्षित )
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    *अर्थ*----
   यह  अन्योक्ति  भ्रम  अलंकार  का  अत्यंत  सुन्दर  उदाहरण  है ।  पलाश के  फुल  का  रंग  और आकार तोते  की  चोंच  जैसा  होता  है और  तोते को  काले  जामुन  भी  बहुत  पसंद  होते  है ।  और  वैसे  ही  भ्रमर  का  रंग और आकार  काले  जामुन  जैसा  होता  है ।  और  भ्रमर  को  भी  पलाश  के  फुल  पर  बैठना  और  उसका  रसपान  करना  बहुत  ही  पसंद  रहता  है ।  इसी  साम्य पर से  कवीने  कितनी  सुन्दर  रचना  की  है  देखीये।
  भ्रमरने  तोते  की  चोंच  को  देखा  तो  भ्रमवश  उसे  ऐसा  लगा  यह  पलाश  का  सुन्दर फुल  ही  है  और  उस पर  बैठकर  रसपान  करना चाहिए  क्या ?  और  दुसरी तरफ  अपने  चोंच  के  सामने  उड  रहे  भँवरे को  देखकर  तोते  को  लगा  ये  तो  पका  हुआ  जामुन  है ।  और  उसे  खाने  का  प्रयत्न  वह  करने  लगा ।
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*गूढ़ार्थ*------
  बाह्यस्वरूप  को  देखकर  आकर्षित  होनेवाली  आजकल  की  युवापीढ़ी के  लिए  यह  अन्योक्ति  एक  अच्छी  सिख  है ।
  आप  लोग  भी  अर्थ  निकाल  सकते  है ।  उसका  स्वागत  है ।
 
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*卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे /   महाराष्ट्र 
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