|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *चमत्कृति* " ( १२० )
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*श्लोक*-----
" कांच मणि काञ्चनमेकसूत्रे बाले ! निबध्नासि किमत्र चित्रम् ? ।
विचारवान् पाणिनिरेकसूत्रे श्वानं युवानं मघवानमाह " ।।
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*अर्थ*----
हे बाले ! कांच , रत्न और सोने के मणि यह सब तुमने एक ही सूत्र में पिरो दिये ? इसमें कोई विचित्रता नही है क्यों कि पाणिनि जैसे महान व्याकरणकार ने भी श्वान युवान और मघवा को एक ही सूत्र में रखा है । सूत्र= धागा और पाणिनिसूत्र ।
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*गूढ़ार्थ*----
पाणिनी के व्याकरण में उसने श्वन् , युवन् और मघवन् यह तीनो शब्द एक जैसे चलते है इसलिए एक ही सूत्र में पिरोये है ।
इस तरह से -- श्वा = कुत्ता , युवा = तरुण पुरुष और मघवा = इन्द्र।
ऐसे तीनों बिलकुल ही भिन्न मूल्यों के शब्द एक सूत्रों में रख दिये ।
जैसे की गधे घोड़े सब एक ही हो । ऐसा करने से पाणिनी अलग अर्थ से तारतम्यरहित हो गया ऐसा सुभाषितकार कह रहा है उसका उदाहरण उसने एक बालिका जिसको मूल्यामूल्यविवेक अभी आया नही वह कांच , रत्न और सुवर्णमणि एक ही धागे में पिरोति है ।
सुभाषितकार कह रहा है वह तो बालिका है लेकीन इतने बडे विचारवंत पाणिनी ने भी कुत्ता , तरुण और इन्द्र को एक ही सूत्र में रख दिया ।
यह पाणिनी के उपर जो अविवेक का दाग आया वह उसके भक्त ने कैसे खण्डन करके दूर किया यह हम कल के सुभाषित में देखेंगे ।
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डाॅ . वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *चमत्कृति* " ( १२१ )
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*श्लोक*---
" शुनेव यूना प्रसभं मघोना प्रधर्षिता गौतमधर्मपत्नी ।
विवेकवान् पाणिनिरेकसूत्रे श्वानं युवानं मघवानमाह " ।।
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*अर्थ*----
कल के श्लोक में पाणिनीपर जो अविवेक का कलंक लगा उसका खण्डन पाणिनी का भक्त कर रहा है -------
कुत्ते के जैसे तरुण इन्द्रने जबरदस्ती से ( दुष्टता से ) गौतम ऋषि की धर्मपत्नी ( अहल्या ) को शीलभ्रष्ट किया । इससे बहुत विचारांती ही महर्षिं पाणिनी ने श्वा , युवा और मघवा इन तीनों को एक सूत्र में रखा।
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*गूढ़ार्थ*----
सुभाषितकार ने कितनी खुबसूरती से महर्षि पाणिनी का श्रेष्ठत्व यहाँ पर हमे बताया है । भलेही श्वान् , युवान् , मघवानमाह यह शब्द एक जैसे चलते है इसलिए उन्हे पाणिनी ने एक सूत्र में रखा है किन्तु उनपर अविवेक का दाग़ लग गया तो उनके भक्त ने खण्डन करते समय अहल्या की कथा से उसे जोडकर पाणिनी अविवेकी नही तो कितना बुद्धिमान था कि जिसने इन्द्र का कर्म देखकर उसे कुत्ते और युवा की श्रेणी में रख दिया । है न सही में मजेदार चमत्कृति ?
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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