Monday, February 24, 2020

4 stages of life - Sanskrit sloka

|| *ॐ* ||
      " *सुभाषितरसास्वादः* "
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    " *तत्त्वज्ञाननीति* " (१०३ )
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  *श्लोक*---
   " प्रथमे  नार्जिता  विद्या  द्वितीये  नार्जितं  धनम् ।
    तृतीये  नार्जिता  कीर्तिः  चतुर्थे  किं  करिष्यसि ? " ।।
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  *अर्थ*---
आयुष्य  के  पहले  भाग  में  विद्यार्जन  किया  नही ,  दुसरे  भाग  में  धन  कमाया  नही और  तिसरे  भाग में  कीर्ति  भी  अर्जित  नही  की  तो  वृद्धावस्था  में  कौन  क्या  करेगा ?
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*गूढ़ार्थ*----
मानव  के  आयुष्य  के  चार  भाग  की  कल्पना  की  है ।  प्रथम  भाग  में  विद्यार्जन  करना  चाहिए  जो  मनुष्य  के  लिए  अत्यंत  आवश्यक  है  और  फिर  दुसरे  भाग  में  धनार्जन  अवश्य  करना  चाहिए । तीसरे  भाग  में  सत्कार्य  करके  किर्ति  का  अर्जन  करना  चाहिए ।  यह  सब  पहले  किया  तो  फिर वृद्धावस्था  आनंद  से  गुजरती  है । भारतीय  संस्कृति  में  कब  क्या  करना  चाहिए  इसके  कुछ  दण्डक  है ।  वह  समय  पर  अनुसरित  किये  गये  तो  ठीक  रहता  है ।  समय  निकल जाने  के  बाद  किसी  भी  साधन  का  कोई  उपयोग  नही  होता  है ।  किस  आयु  में  क्या  कमाना  चाहिए  यही  इस  सुभाषित  में  बताया  गया  है ।  और  जो  अर्जन  करना  है  वह  एक दूसरे  पर  आधारित  है ।
सुभाषितकार  ने  भारतीय  आश्रम  व्यवस्था  का  बहुत सुन्दर  तरीके से  वर्णन  प्रस्तुत  सुभाषित  में किया  है ।
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*卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ.  वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे /   महाराष्ट्र 
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