|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *प्रहेलिकाः* " ( ११३ )
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*श्लोक*----
" वृक्षात्प्राप्तं खगं धृत्वा
शिलोपरि वधः कृतः ।
रक्तमांसाशनेनापि
उपवासो न खण्डितः ।।
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*अर्थ*----
वृक्ष पर प्राप्त होता हूँ , पक्षी मुझ पर बैठते है ।
शिला के उपर मेरा वध किया जाता है , रक्त ,मांस से भरा हुआ हूँ।
किन्तु मेरे खाने से उपवास खण्डित नही होता है ।
तो मैं कौन हूँ ?
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*गूढ़ार्थ*----
नारिकेलम्
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*卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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