|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *स्त्रीनीति* " ( ११२ )
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*श्लोक*----
" स्त्रियो हि नाम खल्वेता निसर्गादेव पण्डिताः ।
पुरुषाणां तु पाण्डित्यं शास्त्रेणैवोपदिश्यते " ।।
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*अर्थ*---
पांडित्य का विचार किया जाता है तब ऐसा देखने को मिलता है कि , पांडित्य ( सुज्ञता ) स्त्रीयों में निसर्गदत्त ही होती है । लेकीन पुरुषों का पांडित्य तो केवल शास्त्र के द्वारा ही पढा हुआ होता है ।
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*गूढ़ार्थ*-----
यहाँ पर सुभाषितकार ने स्त्री और पुरुष के मुल स्वभाव पर प्रकाश डाला है जो एकदम ही सही है । जन्म से स्त्रियों को मनुष्यस्वभाव पहचानने की निसर्गदत्त देणगी प्राप्त है । इसलिये वह जल्दी ही किसी को पहचान के उसके साथ वैसा व्यवहार करती है । हां स्त्रियों को चञ्चल जरूर कहा जाता है पर उसमें सिक्स्थ सेन्स पुरुषों की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही होता है । पुरुषों को जो बाते शास्त्र सिखने के बाद मिलती है वही स्त्री को घर के बाहर कदम न रखकर भी समझ में आती है । एक विधुर पुरुष को घर संभालना बडा कठिन जाता है वही एक विधवा स्त्री खंबीरता से घर संभाल लेती है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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