||ॐ||
" सुभाषित रसास्वाद "(२६)
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" राजनीति: "।
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श्लोक---
" दुर्गेषु च महाराज षटसु ये शास्त्रनिश्चिताः।
सर्वदुर्गेषु मन्यन्ते नरदुर्गे सुदुस्तरम् "।।
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अर्थ---
शास्त्र के द्वारा छह प्रकार के किल्ले राजा के लिए निश्चित किये गये है । किन्तु उन सब में मानव दुर्ग अत्यंत दुस्तर माना गया है ।
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गूढार्थ----
प्रस्तुत श्लोक महाभारत के " भीष्म गीता " से है । युधिष्ठिर को शरपंजरी पडे हुए भीष्म राजनीति का उपदेश दे रहे है ।
तब वह कहते है छह दुर्ग तो शास्त्र मे निश्चित ही महत्वपूर्ण है जो राजा के लिए आवश्यक है किन्तु नृदुर्ग अत्यंत कठिन है जिससे आसानी से जिता नही जा सकता ।
छह दुर्ग---(१) महि दुर्ग (२) जल दुर्ग (३) गिरी दुर्ग (४) वृक्ष दुर्ग (५) निरोधक दुर्ग (६) नर दुर्ग ।
इनमें महत्वपूर्ण नृदुर्ग माना गया है । यहाँ पर नृदुर्ग के दो अर्थ भीष्माचार्य को अभिप्रेत है ।
(१) जिस किले के चहूतरफा मनुष्य की सेना ही सेना हो ।
(२) और मानव दुर्ग मतलब मानवी मन की दिवार भेदने में अत्यंत कठिन होती है ।
जो राजा मानवी मन की अभेद्य दिवार भेदने में यशस्वी होता है ।
वही राजा अक्षय कीर्ति पाता है । और वही राजा अजेय भी होता है ।
कितना सुन्दर तरीके से भीष्माचार्य ने युधिष्ठिर को ज्ञान दिया है ।
रामायण और महाभारत ये दो अमूल्य रत्न है हमारे संस्कृति के ।
इस प्रकाश में जितना भी भिगो एक जन्म कम ही है ।
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卐卐ॐॐ卐卐
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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" सुभाषित रसास्वाद "(२६)
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" राजनीति: "।
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श्लोक---
" दुर्गेषु च महाराज षटसु ये शास्त्रनिश्चिताः।
सर्वदुर्गेषु मन्यन्ते नरदुर्गे सुदुस्तरम् "।।
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अर्थ---
शास्त्र के द्वारा छह प्रकार के किल्ले राजा के लिए निश्चित किये गये है । किन्तु उन सब में मानव दुर्ग अत्यंत दुस्तर माना गया है ।
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गूढार्थ----
प्रस्तुत श्लोक महाभारत के " भीष्म गीता " से है । युधिष्ठिर को शरपंजरी पडे हुए भीष्म राजनीति का उपदेश दे रहे है ।
तब वह कहते है छह दुर्ग तो शास्त्र मे निश्चित ही महत्वपूर्ण है जो राजा के लिए आवश्यक है किन्तु नृदुर्ग अत्यंत कठिन है जिससे आसानी से जिता नही जा सकता ।
छह दुर्ग---(१) महि दुर्ग (२) जल दुर्ग (३) गिरी दुर्ग (४) वृक्ष दुर्ग (५) निरोधक दुर्ग (६) नर दुर्ग ।
इनमें महत्वपूर्ण नृदुर्ग माना गया है । यहाँ पर नृदुर्ग के दो अर्थ भीष्माचार्य को अभिप्रेत है ।
(१) जिस किले के चहूतरफा मनुष्य की सेना ही सेना हो ।
(२) और मानव दुर्ग मतलब मानवी मन की दिवार भेदने में अत्यंत कठिन होती है ।
जो राजा मानवी मन की अभेद्य दिवार भेदने में यशस्वी होता है ।
वही राजा अक्षय कीर्ति पाता है । और वही राजा अजेय भी होता है ।
कितना सुन्दर तरीके से भीष्माचार्य ने युधिष्ठिर को ज्ञान दिया है ।
रामायण और महाभारत ये दो अमूल्य रत्न है हमारे संस्कृति के ।
इस प्रकाश में जितना भी भिगो एक जन्म कम ही है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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