Friday, December 13, 2019

Fort - Sanskrit sloka

||ॐ||
" सुभाषित  रसास्वाद "(२६)
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" राजनीति: "।
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श्लोक---
" दुर्गेषु  च  महाराज  षटसु ये  शास्त्रनिश्चिताः।
सर्वदुर्गेषु  मन्यन्ते  नरदुर्गे  सुदुस्तरम् "।।  
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अर्थ---
शास्त्र  के  द्वारा  छह प्रकार  के  किल्ले  राजा  के  लिए  निश्चित  किये  गये  है । किन्तु  उन  सब  में  मानव  दुर्ग  अत्यंत  दुस्तर  माना  गया  है ।
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गूढार्थ----
प्रस्तुत  श्लोक  महाभारत  के  "  भीष्म  गीता " से  है । युधिष्ठिर  को  शरपंजरी  पडे  हुए  भीष्म  राजनीति  का  उपदेश  दे  रहे  है ।
तब  वह  कहते  है  छह  दुर्ग  तो  शास्त्र  मे  निश्चित  ही  महत्वपूर्ण  है  जो  राजा  के  लिए   आवश्यक  है  किन्तु  नृदुर्ग  अत्यंत  कठिन है  जिससे  आसानी  से  जिता  नही  जा  सकता ।
छह दुर्ग---(१) महि  दुर्ग (२) जल  दुर्ग (३) गिरी दुर्ग (४) वृक्ष दुर्ग (५) निरोधक  दुर्ग (६) नर  दुर्ग ।
इनमें  महत्वपूर्ण  नृदुर्ग  माना  गया है । यहाँ  पर  नृदुर्ग  के दो  अर्थ  भीष्माचार्य  को  अभिप्रेत  है ।
(१) जिस  किले  के  चहूतरफा  मनुष्य  की  सेना  ही  सेना  हो ।
(२) और मानव दुर्ग  मतलब  मानवी  मन  की  दिवार  भेदने  में  अत्यंत  कठिन  होती  है ।
जो  राजा  मानवी  मन  की  अभेद्य  दिवार  भेदने  में  यशस्वी  होता  है ।
वही  राजा  अक्षय  कीर्ति  पाता  है । और वही  राजा  अजेय  भी होता  है ।
कितना  सुन्दर  तरीके  से  भीष्माचार्य  ने  युधिष्ठिर  को  ज्ञान  दिया  है ।
रामायण और  महाभारत  ये  दो  अमूल्य रत्न  है  हमारे  संस्कृति के ।
इस  प्रकाश  में  जितना भी  भिगो  एक  जन्म  कम  ही  है ।
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर    
पुणे /  महाराष्ट्र  
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