Friday, December 13, 2019

Discontent-Sanskrit Subhashitam

||  *ॐ* ||
                                   || *सुभाषितरसास्वादः* ||
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                                 ||  *सन्तोष प्रशंसा*  || (३५)
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*श्लोक*-----
"  गन्धाढ्यां  नवमल्लिकां  मधुकरस्त्यक्त्वा  गतो  यूथिकां 
तं  दृष्ट्वाशु  गतः स  चन्दनवनं  पश्चात्सरोजं  ततः।
बद्धस्तत्र  निशाकरेण  सहसा  रोदत्यसौ  मन्दधीः
संतोषेण  विना  पराभवपदं  प्राप्नोति  सर्वे  जनाः "।। ( भ्रमराष्टकम् )
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*अर्थ*----
पुष्पलोभी  भ्रमर  ने  बहुत  सुवासिक  ऐसे  मल्लिका ( मोगरा ) पुष्प  का  मादक सुवास  लिया ।  फिर  वह  मल्लिका  छोडकर  यूथिका  ( जाई  )
के  पुष्प  पर  गया  लेकिन  जाई  की  सुंदरता  से  उसका  मन  नही  भरा ।फिर  वह  भ्रमर  चन्दनवन  में  गया ।  लेकीन  वहाँ  पर  भी  उसका  समाधान  नही  हुआ  और  आखिर  वह  कमल  पुष्प  के  उपर  जा  बैठा  किन्तु  उसी  समय  चन्द्रदोय  होने  के  कारण  कमल  की  पंखुड़ियां बंद  हो  गयी ।  जिसके  कारण  भ्रमर  उसमें  बंद  हो  गया । और  फिर  रोने  लगा ।
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*अर्थ*----
संतोषवृत्ती  के  अभाव  में  कैसा  दुःख  भोगना  पड़ता  है  इसका  सुन्दर  उदाहरण  सुभाषितकार  ने  भ्रमर  के  माध्यम  से  दिया  है ।
जो  मिल  रहा  उसमें  अगर  संतुष्ट  नही  होते  तो  आखिर  रोने  की  बारी  ही  आती  है ।  संतोषवृत्ती  के  अभाव  में  सब  लोगों  को  यही  दुःख  भोगना  पड़ता  है ।
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*卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे  /   महाराष्ट्र 
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