कुसुमं वर्णसंपन्नं गन्धहीनं न शोभते।
न शोभते क्रियाहीनं मधुरं वचनं तथा॥
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भावार्थ - जिस प्रकार से गन्धहीन होने पर, सुन्दर रंगों से सम्पन्न पुष्प भी शोभा नहीं देता। उसी प्रकार से अकर्मण्य होने पर, मधुरभाषी व्यक्ति भी शोभा नहीं देता।
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