Monday, February 18, 2019

Sanskrit subhashitam

|| ॐ || 
" सुभाषितरसास्वाद् " 
" वक्रोक्ति " [ ३०९ ] 
श्लोकः—सरसा सालंकारा सुपदन्यासा सुवर्णमयमूर्तिः| 
आर्या तथैव भार्या न लभ्यते पुण्यहीनेन || 
अर्थः—सरस, सालङ्कार, सुपदन्यास, सुवर्णमयमूर्ति ऐसी आर्या और भार्यां पुण्यहीन लोगों को मिलती नहीं| 
गूढार्थः—आर्या [ काव्य ] सरस—रसयुक्त| सालंकार—शब्द के अलंकार पहने हुई| 
सुपद्न्यास—पदलालित्ययुक्त| सुवर्णमयमुर्ति—मीठी रचना| 
भार्या [ पत्नी ] रसिक, सुवर्णअलंकारयुक्त, जिसका पदन्यास मोहक है, सुवर्णकान्ति वाली| 
यहाँ पर कवी कह रहा है की अच्छी पत्नी और अच्छा काव्य पुण्यहीनों के नसीब में नही होता| 
मतलब पुण्य से ही काव्यरचना स्फूरती है| और पुण्य से ही अच्छी पत्नी मिलती है| 
|| ॐॐॐॐ || 
डॉ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर 
पुणे / महाराष्ट्र 
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