Monday, February 18, 2019

Durga stuti by Arjuna in Mahabharata - Sanskrit

Courtesy:http://arjunakruthadurgastuthi.blogspot.com/2017/11/blog-post.html

नमस्ते  सिद्धसेनानी  आर्ये  मन्दरवासिनि 
कुमारि  कालि कापाली  कपिले क्रुष्ण-पिङ्गले    ॥१॥

भद्रकालि  नमस्तुभ्यम्  महाकाली  नमोSस्तु  ते 
चंडिचंडे  नमस्तुभ्यम्   तारिणि   वरवर्णिनि      ॥२॥

 कात्यायनि  महाभागे  करालि  विजये  जये 
शिखिपिच्छ ध्वज-धरे नाना-भरण-भूषिते          ॥३॥

अट्टशूल  प्रहरणे  खड्गखेटधारिणि 
गोपेन्द्रस्यानुजे  ज्येष्टे  नन्दगोपकुलोद्भवे           ॥४॥

महिषासृक्प्रिये  नित्यं  कौशिकि  पीतवासिनि
अट्टहासे  कोकमुखे  नमस्तेSस्तु  रणप्रिये         ॥५॥ 

उमे  शाकम्बरी  श्वेते  कृष्णे  कैटभनाशिनि  
हिरण्याक्षि  विरूपाक्षि  सुधूम्राक्षि  नमोSस्तु  ते ॥६॥

वेदश्रुति  महापुण्ये  ब्रह्मण्ये  जातवेदसि  
जम्बूकटकचैत्येषु  नित्यं  सन्निहितालये             ॥७॥

त्वं  ब्रह्म-विद्या- विद्यानां  महानिद्रा च  देहिनाम् 
स्कन्दमातर्भगवति  दुर्गे  कान्तारवासिनि           ॥८॥

स्वाहाकार: स्वधा  चैव  कला  काष्ठा  सरस्वती  
सावित्री  वेदमाता  च  तथा  वेदान्त  उच्यते       ॥९॥

स्तुतासि   त्वं  महादेवि  विशुद्धेनान्तरात्मना
जयो  भवतु  मे  नित्यं  त्वत्प्रसादाद्रणाजिरे       ॥१०॥

कान्तारभयदुर्गेषु  भक्तानां चालयेषु  च 
नित्यं  वससि  पाताले  युद्धे  जयसि  दानवान्   ॥११॥

त्वं  जम्भनी  मोहिनी च  माया  ह्री:  श्रीस्तथैव च
सन्ध्या  प्रभावती  चैव  सावित्री  जननी  तथा    ॥१२॥

तुष्टि: पुष्टिर्धृतिर्दीप्तिश्चन्द्रादित्य - विवर्धिनी 
भूतिर्भुतिमतां  संख्ये   वीक्ष्यसे  सिद्धचारणै:  ॥१३॥  

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